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________________ बारहभावना : एक अनुशीलन एकत्व अनुप्रेक्षा में 'मैं एक हूँ' इत्यादि प्रकार से विधिरूप व्याख्यान है और अन्यत्व - अनुप्रेक्षा में 'देहादि पदार्थ मेरे से भिन्न हैं, मेरे नहीं हैं'- इसप्रकार निषेधरूप से व्याख्यान है। इस रीति से एकत्व और अन्यत्व इन दोनों अनुप्रेक्षाओं में विधि और निषेधरूप ही अन्तर है, दोनों का तात्पर्य एक ही है । " - अन्यत्वभावना की चर्चा यथास्थान होगी ही, अभी तो यहाँ एकत्वभावना का अनुशीलन ही अपेक्षित है। ६१ जीवन-मरण, सुख-दु:ख आदि प्रत्येक स्थिति को जीव अकेला ही भोगता है, किसी भी स्थिति में किसी का साथ सम्भव नहीं है । - वस्तु की इसी स्थिति का चिन्तन एकत्वभावना में गहराई से किया जाता है, अनेक युक्तियों और उदाहरणों से उक्त तथ्य की ही पुष्टि की जाती है I एकत्वभावना का स्वरूप स्पष्ट करनेवाला निम्नांकित छन्द द्रष्टव्य हैं " एकाकी चेतन संदा, फिरे सकल संसार । साथी जीव न दूसरो, यहु एकत्व विचार ॥" उक्त छन्द में यह बात स्पष्टरूप से कही गई है कि सम्पूर्ण संसार में परिभ्रमण करता हुआ यह जीव प्रत्येक परिस्थिति में सदा अकेला ही रहता है, कोई दूसरा साथ नहीं देता । - यह विचार करना ही एकत्व भावना है। "आप अकेला अवतरे, मरे अकेला होय । यों कबहूँ या जीव को, साथी सगा न कोय ॥" इस छन्द में जन्म और मरण में अकेलापन बताकर मात्र जन्म और मरण में ही अकेलापन नहीं बताया है, अपितु जन्म से लेकर मरण तक की प्रत्येक परिस्थिति में अकेलापन दर्शाया है। १. भावना संग्रह, पृष्ठ २६ २. कविवर भूधरदास कृत बारह भावना एक बात और भी कही है कि इस दुखमय संसार में कहने के साथी तो बहुत मिल जायेंगे, पर सगा साथी - वास्तविक साथी कोई नहीं होता; क्योंकि वस्तुस्थिति के अनुसार कोई किसी का साथ दे ही नहीं सकता ।
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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