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________________ बारहभावना : एक अनुशीलन - यह मतार्थ की दृष्टि से किया गया तात्त्विक कथन ही है। १५ इसप्रकार हम देखते हैं आरम्भ की छह भावनाएँ वैराग्योत्पादक एवं अन्त की छह भावनाएँ तत्त्वपरक हैं; परन्तु इसे नियम के रूप में देखना ठीक न होगा; क्योंकि यह कथन मुख्यता और गौणता की अपेक्षा से किया गया कथन ही है । वैराग्योत्पादक चिन्तन से भावभूमि के सरल हो जाने पर - तरल हो जाने पर उसमें बोया हुआ तत्त्वचिन्तन का बीज निरर्थक नहीं जाता; उगता है, बढ़ता है, फलता भी है और अन्त में पूर्णता को भी प्राप्त होता है। कठोर - शुष्क भूमि में बोया गया बीज नाश को ही प्राप्त होता है। अतः जमीन को जोतने - सींचने के श्रम को निरर्थक नहीं माना जा सकता। आरम्भ की छह भावनाएँ मुख्यरूप से भावभूमि को जोतने एवं वैराग्यरस से सींचने का ही काम करती है; जो कि अत्यन्त आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है । बारह भावनाओं के क्रम में भेदविज्ञान का क्रमिक विकास भी दृष्टिगोचर होता है। यदि आरम्भ की छह भावनाएँ परसंयोगों की अस्थिरता, पृथक्ता एवं मलिनता का सन्देश देकर अनादिकालीन परोन्मुखता समाप्त कर अन्तरोन्मुख होने के लिए प्रेरित करती हैं तो सातवीं आस्रवभावना संयोगाधीनदृष्टि से उत्पन्न होनेवाले संयोगीभावों-मिथ्यात्वादि विकारों से विरक्ति उत्पन्न करती है; तथा संवर, निर्जरा, लोक, बोधिदुर्लभ और धर्म भावनाएँ उस निज शुद्धात्मतत्त्व के प्रति समर्पित होने का मार्ग प्रशस्त करती हैं, जिसके आश्रय से रत्नत्रयरूप संवरादि निर्मल पर्यायें उत्पन्न होती हैं । आत्मार्थी मुमुक्षुओं के लिए बारह भावनाओं का चिन्तन कभी-कभी का नहीं, प्रतिदिन का कार्य है; अत: इस विषय पर विविध दृष्टिकोणों से हल्काभारी सभी प्रकार का चिन्तन हुआ है। जहाँ एक ओर एक छन्द में बारह भावनाओं का चिन्तन प्रस्तुत कर दिया गया है तो दूसरी ओर इनके प्रतिपादन में पूरे ग्रन्थ लिख दिये गये हैं । 1
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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