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________________ १७२ धर्मभावना : एक अनुशीलन "सांसारे पतन्तं प्राणिनमुद्धृत्यनरेन्द्रनागेन्द्रदेवेन्द्रवन्धे मोक्षपदेधरतीति धर्म इति धर्मशब्देनात्र निश्चयेन जीवस्य शुद्धपरिणाम एव ग्राह्यः। तस्य तु मध्ये वीतरागसर्वज्ञप्रणीतनयविभागेन सर्वे धर्मा अन्तर्भूता लभ्यन्ते। तथा अहिंसालक्षणो धर्मः सोऽपि जीवशुद्धभावं बिना न संभवति। सागारानगारलक्षणो धर्मः सोऽपि तथैव। उत्तमक्षमादि दशविधो धर्मः सोऽपि जीवशुद्धभावमपेक्षते। 'सद्दष्टिज्ञानवृत्तानि धर्मं धर्मेश्वरा विदुः' इत्युक्तं यद् धर्मलक्षणं तदपि तथैव। रागद्वेशमोहरहितः परिणामो धर्मः सोऽपि जीवशुद्धस्वभाव एव। वस्तुस्वभावो धर्मः सोऽपि तथैव। __ संसार में पड़े हुए प्राणियों को संसारदु:खों से निकाल कर नरेन्द्र, नागेन्द्र और देवेन्द्रों द्वारा वंदनीय मोक्षपद में जो धारण करा दे, वही धर्म है। यहाँ'धर्म' शब्द से निश्चय से जीव के शुद्ध परिणाम ही ग्रहण करना चाहिए। उन शुद्ध परिणामों में वीतराग-सर्वज्ञ भगवान द्वारा प्रतिपादित नयविभाग से सभी धर्म अन्तर्भूत हो जाते हैं । अहिंसा धर्म भी जीव के शुद्ध भावों के बिना संभव नहीं है। इसीप्रकार गृहस्थ और मुनिधर्म तथा उत्तमक्षमादि दशधर्म भी जीव के शुद्ध स्वभावों की अपेक्षा रखते हैं। धर्म के यह लक्षण भी जीव का शुद्ध स्वभाव ही है तथा राग-द्वेष-मोह रहित आत्मा का परिणामरूपं धर्म भी जीव का शुद्धस्वभाव ही है। इसीप्रकार वस्तु का स्वभाव धर्म है - यह कथन भी जीव के शुद्धस्वभावरूप धर्म को ही बताता है।" । उक्त सम्पूर्ण कथन से यह बात हाथ पर रखे आँवले के समान स्पष्ट हो जाती है कि आत्मा के आश्रय से उत्पन्न होनेवाले निर्मलपरिणाम - शुद्धभाव ही वास्तविक धर्म है। विभिन्न शास्त्रों में विभिन्न स्थानों पर विभिन्न अपेक्षाओं से की गई धर्म की व्याख्याएँ विभिन्न प्रकार से जीव के स्वभावभावरूप शुद्धपरिणामों को ही धर्म निरूपति करती हैं, उनमें कहीं कोई विरोधाभास नहीं है। द्रव्यस्वभावप्रकाशक नयचक्र में धर्म को शुद्धभाव, वीतरागता आदि अनेक नामों से अभिहित किया गया है। धर्म के नामान्तर बताते हुए द्रव्यस्वभावप्रकाशक नयचक्रकार माइल्लधवल लिखते हैं - १. परमात्मप्रकाश ; अध्याय २, दूहा ६८ को श्रीमद् ब्रह्मदेव कृत संस्कृत टीका
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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