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________________ बारहभावना : एक अनुशीलन १५१ है, महादुर्लभ है और इस बोधि की दुर्लभता का विचार, चिन्तन, बार-बार चिन्तन ही बोधिदुर्लभभावना है। इसी दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप बोधि का अत्यन्त आदर करने का आदेश देते हुए स्वामी कार्तिकेय लिखते हैं - "इय सव्व दुलह-दुलहं दंसणणाणं तहाचरित्तं च। मुणिऊण य संसारे महायरं कुणह तिण्हंपि॥ इन सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र को संसार की समस्त दुर्लभ वस्तुओं से भी दुर्लभ जानकर इनका अत्यन्त आदर करो।" __ बोधि और समाधि का अन्तर वृहद्रव्यसंग्रह की संस्कृत टीका में इसप्रकार स्पष्ट किया गया है - "सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणामप्राप्तप्रापणं बोधिस्तेषामेव निर्विनेन भवान्तरप्रापणं समाधिरिति। अप्राप्त सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र का प्राप्त होना बोधि है और उन्हीं सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र को निर्विघ्न अन्य भव में साथ ले जाना समाधि है।" यद्यपि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र - इन तीनों को या तीनों की एकता को बोधि कहते हैं; तथापि बोधिदुर्लभभावना की चर्चा करते हुए अनेक स्थानों पर अकेले 'सम्यग्ज्ञान' या 'पहिचान' शब्द का प्रयोग भी किया गया है; परन्तु आशय सर्वत्र एक ही है, सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र से ही है; क्योंकि इन तीनों की उत्पत्ति एक साथ ही होती है। आचार्य कुन्दकुन्द स्वयं 'सण्णाणं' शब्द का प्रयोग करते हैं - "उप्पज्जदि सण्णाणं जेण उवायेण तस्सुवायस्स। चिन्ता हवेई बोही अच्चन्तं दुल्लहं. होदि॥ जिस उपाय से सम्यग्ज्ञान की उत्पत्ति हो, उस उपाय का अत्यन्त चिन्तन अर्थात् बार-बार चिन्तन-मनन ही बोधिदुर्लभभावना है।" १. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गाथा ३०१ २. वृहदद्रव्यसंग्रह गाथा ३६ को टीका, पृष्ठ १६४ ३. बारस अणुवेक्खा, गाथा ८३
SR No.009445
Book TitleBarah Bhavana Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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