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________________ आत्मा ही है शरण 174 अत्यन्त उत्साह से भाग लेते हैं । स्वयं के परिवार को तो अध्ययन के प्रति, स्वाध्याय के प्रति जागृत रखते ही हैं, अन्य साधर्मी भाइयों में भी जो आध्यात्मिक जागृति लन्दन में देखने में आती है, उसका श्रेय भी उनको ही जाता है । लन्दन से २३ जुलाई, १९८९ ई. रविवार को प्रातः चलकर पश्चिमी जर्मनी के प्रमुख औद्योगिक एवं व्यापारिक नगर फ्रेन्कफर्ट पहुंचे, जहाँ उसी दिन विश्व हिन्दू परिषद् के तत्वावधान में 'भगवान महावीर और उनकी अहिंसा' विषय पर व्याख्यान आयोजित था । यह व्याख्यान विश्व हिन्दू परिषद् के निर्माणाधीन मन्दिर के स्थल पर ही आयोजित किया गया था । साथ ही सबके भोजन की व्यवस्था भी रखी गई थी । लगभग २०० लोगों की उपस्थिति में हुए इस व्याख्यान में विश्व हिन्दू परिषद् के सम्पूर्ण संघाई क्षेत्र के अध्यक्ष प्रसिद्ध उद्योगपति अशोक चौहान और फ्रेन्कफर्ट नगर के अध्यक्ष श्रीनिवासन भी उपस्थित थे। ___ सम्पूर्ण कार्यक्रम को व्यवस्थित किया था श्री रमेशचन्दजी जैन ने । हम उन्हीं के घर पर इडार में ठहरे थे । वे विश्व हिन्दू परिषद् के लगनशील समर्पित कार्यकर्ता हैं, वे जयपुर के ही हैं, विभाजन के समय मुलतान (पाकिस्तान) से आई जैन समाज के अंग हैं और वेस्ट जर्मनी में उनका जवाहरात का बहुत बड़ा व्यवसाय है । वे सात्विक वृत्ति के सदाचारी गृहस्थ हैं, उनका समय व्यापार से भी अधिक विश्व हिन्दू परिषद् के काम में लगता है । विदेश में रहकर भी अपने देश की चिन्ता जितनी उन्हें है, उतनी देशवासियों में भी बहुत कम देखने को मिलती है । दूसरे दिन का कार्यक्रम उन्होंने अपने घर पर ही रखा था, जिसमें जैनसमाज के लोग उपस्थित थे । जयपुर के अनेक जौहरियों के ऑफिस वेस्ट जर्मनी
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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