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________________ 173 धूम क्रमबद्धपर्याय की उन्होंने बताया कि ये पाँचों केसेट हमारे एक मित्र के पास थे, जिन्हें वह प्रतिदिन सुना करता था । हम एक दिन उसके घर गये तो वह वही केसेट सुन रहा था । जवतक प्रवचन समाप्त नहीं हो गया, तबतक उसने हमसे कोई बात नहीं की । प्रवचन समाप्त होने पर जब हमने पूछा तो उसने हमें आपके बारे में बताया । हमने उससे केसेट माँगे तो उसने कहा कापी करलो, मूल केसेट तो मैं किसी को नहीं दूंगा । हमने उससे कापी की । इसप्रकार कई कापियाँ होकर हमारी पूरी मण्डली में फैल गईं, जिसमें हिन्दू-मुसलमान सभी हैं । उनका इतना वात्सल्य देखकर हम गद्गद् हो गये और हमें लगा कि सचमुच सभी भगवान आत्मा ही हैं, कोई हिन्दू-मुसलमान नहीं, कोई जैन नहीं । जहाँ भारत में बसे अनेक जैन भी इस तत्त्वज्ञान का विरोध करते हैं, वहाँ परदेश में बसे हिन्दू-मुसलमान भी कितने प्रेम से सुनते हैं, समझते हैं, शक्ति के अनुसार धारण भी करते हैं । वीतरागी तत्त्वज्ञान को संप्रदाय की सीमा में बांधना उचित नहीं है, संभव भी नहीं है । २२ जुलाई, १९८९, शनिवार की शाम को लन्दन में कार्यक्रम रखा गया था । यह कार्यक्रम भगवानजीभाई कचराभाई के वेयरहाउस के हॉल में रखा गया था । रात्रि ८.३० से १० बजे तक बहुत सुन्दर कार्यक्रम चला । इसके पूर्व सायं ५ से ६.३० बजे तक वीरेन्द्र जैन के घर पर कार्यक्रम रखा गया था यह भी अच्छा रहा । यह तो सर्वविदित ही है कि तीन वर्ष पूर्व भगवानजीभाई ने शास्त्रों की कीमत कम करने के लिए एक लाख रुपये की स्वीकृति प्रदान की थी, जो अब पूर्ण प्रयोग में आ चुकी है । अब उन्होंने इसी प्रकार उपयोग करने के लिए एक लाख रुपये की स्वीकृति और प्रदान की है । इसप्रकार अब उनकी ओर से निरन्तर शास्त्रों की कीमत कम होती रहेगी । ९० वर्ष की उम्र होने पर भी वे आध्यात्मिक जागृति में अत्यन्त सक्रिय हैं, व्यापारिक कार्यों से पूर्णतः निवृत्त होने पर भी धार्मिक गतिविधियों में
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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