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________________ 159 धूम क्रमबद्धपर्याय की अतः वह माँ के मिले बिना कहने वाला नहीं है; क्योंकि उसे इज्जत नहीं, माँ चाहिए । जिन्हें आत्मा से अधिक इज्जत प्यारी है, उन्हें इज्जत ही मिलती है, आत्मा नहीं । जब बार-बार बालक न कहता रहा तो पुलिसवाला झल्लाकर बोला"मैं धूप में क्यों खड़ा रहूँ, माँ तो मुझे ही खोजनी है । अतः मैं वहाँ छाया में बैठा हूँ, तू सभी महिलाओं को देख; जब माँ मिल जावे, मुझे बता देना ।" तब ऐसा कहकर पुलिसवाला दूर छाया में जा बैठा । बालक ने भी राहत की सांस ली; क्योंकि पुलिसवाला कुछ सहयोग तो कर ही नहीं रहा था; व्यर्थ की टोका-टोकी कर ध्यान को भंग अवश्य कर रहा था । कम से कम अब उसके चले जाने पर बालक पूरी शक्ति से, स्वतंत्रता से माँ को खोज तो सकता है । इसीप्रकार जब साधक आत्मा की खोज में गहराई से तत्पर होता है, तब उसे अनावश्यक टोका-टोकी या चर्चा-वार्ता पसन्द नहीं होती; क्योंकि वह उसके ध्यान को भंग करती है । उस बालक को अपनी माँ की खोज की जैसी तड़प है, आत्मा की खोज की वैसी तड़प हमें भी जगे तो आत्मा मिले बिना नहीं रहे । वह बालक अच्छी तरह जानता है कि यदि सायं तक माँ नहीं मिली तो क्या होगा ? घनी अंधेरी रात उसे पुलिस चौकी की काली कोठरी में अकेले ही बितानी होगी और न मालूम क्या-क्या बीतेगी उस पर ? इसका ख्याल आते ही वह काँप उठता है, सब कुछ भूलकर अपनी माँ की खोज में संलग्न हो जाता है । क्या उस बालक के समान हमें भी यह कल्पना है कि यदि जीवन की संध्या तक भगवान आत्मा नहीं मिला तो चार गति और चौरासी लाख
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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