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________________ आत्मा ही है शरण . 158 आप कह सकते हैं कि वह महिला भी ऐसा क्यों कहेगी ? पर मैं कहता हूँ – कह सकती है, बाँझ हो तो बालक के लोभ में कह सकती है और पुलिसवाले तो किसी से भी कुछ भी कहला सकते हैं । क्या आप यह नहीं जानते ? पर बात यह है कि इतने मात्र से माँ को बालक और बालक को अपनी माँ तो नहीं मिल जावेगी । __इसीप्रकार गुरु बार-बार समझायें और समझ में न आने पर हमें भला-बुरा कहने लगें तो हम भय से, इज्जत जाने के भय से कह सकते हैं कि हाँ समझ में आ गया, पर इतना कहने मात्र से तो कार्य चलने वाला नहीं है। ___ इज्जत वाले सेठ ने गुरुजी से पूछा - "भगवन ! आत्मा कैसा है और कैसे प्राप्त होता है ?" गुरुजी ने पाँच मिनट समझाया और पूछा - "आया समझ में ?" सेठ ने विनयपूर्वक उत्तर दिया - “नहीं गुरुजी' गुरुजी ने पांच मिनट और समझाया और फिर पूछा - - "अब आया ?" "नहीं" उत्तर मिलने पर व्याकुल से गुरुजी फिर समझाने लगे, उदाहरण देकर समझाया और फिर पूछा "अब तो आया या नहीं ?" "नहीं" उत्तर मिलने पर झल्लाकर बोले - "माथे में कुछ है भी या गोबर भरा है ?" घबड़ाकर सेठजी बोले - "सब समझ में आ गया" इज्जत वाले थे न, इज्जत जाती दिखी तो बिना समझ में आये ही कह दिया, पर बालक तो इज्जत वाला नहीं है न ?
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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