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________________ 147 धूम क्रमबद्धपर्याय की देश में उन पर अधिक से अधिक टैक्स लगाकर महंगी रखता है । जापान की बनी वस्तु जापान में महंगी मिलेगी और अमेरिका आदि में सस्ती । जो कुछ भी हो, सबकुछ मिलाकर जापान ने ऐसी नीतियों का निर्धारण किया है कि जिससे उसने बर्बादी के बावजूद भी आज विश्व में महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया है । जापान से १३ जून, १९८९ ई. के शाम को ६ बजे चलकर १३ जून, १९८९ के ही प्रातः ११ बजे सान्फ्रांसिस्को (उत्तरी केलीफोर्नियाअमेरिका) पहुँचे । आपको यह जानकर आश्चर्य हो रहा होगा कि ऐसा कैसे हो सकता है, १३ जून के शाम को चलकर १३ जून के प्रातः कैसे पहुँचा जा सकता है ? पर वस्तुतः बात यह है कि जापान में सबसे पहले सूरज उगता है और वही सूर्य पश्चिमी अमेरिका में जापान के १८ घण्टे बाद उगता है; इसकारण जापान से अमेरिका एक दिन पीछे है । तात्पर्य यह है कि जव हम जापान से चले, तव जापान में १३ जून थी और उस समय अमेरिका में १२ जून ही थी । इसकारण हम जापान की १३ जून के शाम को जापान से चलकर अमेरिका की १३ जून के प्रातः अमेरिका पहुँच गये । सान्फ्रांसिस्को में हम हिम्मतभाई डगली के घर ठहरे । उस दिन रात को चर्चा का कार्यक्रम उन्हीं के घर पर रखा गया था । उनके ही घर पर १४ जून को कुन्दकुन्द शतक के पाठ के उपरान्त कुन्दकुन्द शतक की ही ४६ से ५२ तक की गाथाओं पर मार्मिक प्रवचन हुआ । तदुपरान्त एक घण्टे तक तत्त्वचर्चा चली । १५ जून, १९८९ को सानहुजो में नवीन दोधिया के घर पर क्रमबद्धपर्याय पर प्रवचन व चर्चा हुई । १६ जून को वाशिंगटन पहुँचे, जहाँ प्रतिवर्ष की भाँति १७ जून से २० जून तक सेन्टमेरी कॉलेज में शिविर आयोजित था, जो अत्यन्त सफल रहा । इस शिविर में लाभ लेने के लिए वाशिंगटन डी. सी. के लोगों के
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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