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________________ आत्मा ही है शरण 142 मधुकरभाई शाह बम्बई वाले शान्तिभाई जवेरी के छोटे भाई हैं । उनकी आध्यात्मिक रुचि बहुत अच्छी है, तात्विक अभ्यास भी अच्छा है । उन्होंने "जिनवरस्य नयचक्रम्" जैसे कठिन ग्रन्थ का स्वाध्याय चार बार आद्योपान्त कर लिया है । कहीं भी आते-जाते, घूमते-फिरते समय वे नयचक्र संबंधी चर्चा ही करते रहे । उनकी पत्नी, पुत्र, पुत्रवधु सभी आध्यात्मिक रुचि सम्पन्न हैं, सभी ने अत्यन्त रुचिपूर्वक लाभ लिया । आगामी वर्ष आने का भी बहुत-बहुत अनुरोध किया । इसप्रकार हांग-कांग में सबकुछ मिलाकर बहुत अच्छी धर्म-प्रभावना हुई। जिस समय हम हांग-कांग में थे, उस समय चीन में छात्र आन्दोलन बड़े जोरों पर था और उसे नृसंशतापूर्वक कुचला जा रहा था । इसकारण हांग-कांग का भी वातावरण बहुत क्षुब्ध था; क्योंकि वहाँ के पंचानवे प्रतिशत नागरिक चीनी ही हैं । चीनी छात्र आन्दोलन के समर्थन एवं उनके दमनचक्र के विरोध में हांग-कांग में जुलूस निकाले जा रहे थे । सर्वत्र ही भय का वातावरण व्याप्त था; क्योंकि सन् १९९७ ई. में हांग-कांग भी चीन को हस्तान्तरित किया जाने वाला है । इसकारण सम्पन्न नागरिकों में विशेष अस्थिरता का वातावरण था । हांग-कांग से चलकर ७ जून, १९८९ ई. बुधवार को जापान के उसाका हवाई अड्डे पर पहुंचे, जहाँ से कार से कोवे नगर में गये । कोवे में हम जयन्तीभाई एच. शाह के घर पर ठहरे थे । जयन्तीभाई की तीव्र भावना के कारण ही जापान का कार्यक्रम बना था । क्रमबद्धपर्याय पर सुनने की इच्छा भी उनकी ही सर्वाधिक थी; उन्होंने प्रवचनों और चर्चा का भरपूर लाभ भी लिया । उनके सुपुत्र शैलेन्द्रभाई को क्रमबद्धपर्याय ने इतना अधिक आन्दोलित किया कि वे दो-तीन रात ढंग से सोये भी नहीं; इसी के विचार-मंथन में लगे रहे । __ अभी-अभी दशलक्षण महापर्व के अवसर पर बम्बई (मलाड़) में हमारा प्रवचन सुनने जयन्तीभाई आये थे तो बता रहे थे कि शैलेन्द्र तो आपकी
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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