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________________ सजा दी थी, इसलिये वह बैर बाँधकर यहाँ से चला गया था । इन्द्र बोला- महाराज! आपके पास तो इतनी महान शक्तियाँ व ऋद्धियाँ थीं, पर आपने उसका प्रतिकार क्यों नहीं किया? यदि आप उसकी तरफ बस आँख उठाकर भी देख लेते तो वह विमानसहित राख होकर नीचे आ जाता। हे भगवन्! आपकी क्षमा को धन्य है, जो समर्थ होते हुये भी आपने उसे क्षमा कर दिया और ध्यान में लीन होकर उस क्षमा के परिणामस्वरूप केवलज्ञान को प्राप्त कर लिया । उन मेरू महाराज के नाम पर सौधर्म इन्द्र ने माला में उस गाँठ का नाम मेरू की गाँठ रखा, ताकि सभी लोग युगों-युगों तक मेरू महाराज की क्षमा को याद रखें । जाप देने के बाद 'सम्यग्दर्शनाय नमः, सम्यग्ज्ञानाय नमः, सम्यक् चारित्राय नमः, तथा मेरू महाराज को नमस्कार कर उनकी क्षमा को अवश्य याद करना चाहिये और क्षमाधर्म को अपने जीवन में लाने का प्रयास करना चाहिये । क्षमः श्रेयः क्षमः पूजा, क्षमः शमयः क्षमः सुखः । क्षमः दानं क्षमः पवित्रं च क्षमः माँगल्यं उत्तमम् ।। क्षमा ही पूजा है, क्षमा ही पवित्रता है, क्षमा ही सुख है, क्षमा ही दान है, क्षमा ही प्रकाश है । संसार में क्षमा सबसे उत्तम धर्म है । जिसके हृदय में क्षमा है, उसमें सभी धर्म हैं । अतः क्रोध को छोड़कर ऐसे पवित्र क्षमाधर्म को धारण करो । श्री समतासागर महाराज जी ने लिखा है क्रोधी व्यक्ति का स्वभाव अपने आप में अलग होता है । बात-बात में उसे झुंझलाहट आती है । बात-बात में उसका स्वभाव चिड़चिड़ा होता है । बड़े प्रेम से, बड़े प्यार से भी आप उनसे बात करो, पर उनका जवाब बड़ा रूखा और टेढ़ा-मेढ़ा मिलेगा | 79 -
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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