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________________ सबल होते हुये भी सामनवाले को क्षमा कर देना ही सच्ची क्षमा है | कहा भी है - क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल है। न कि उसे जो दन्तहीन विषहीन विनीत सरल है || जो प्रतिकार करने की शक्ति के रहत हुये भी कमजोर व्यक्ति को क्षमा कर द, वही सच्ची क्षमा है। प्रतिकार करने की क्षमता रहते हुय भी अपने परिणामों में समता रखना, कर्मोदय की तीव्रता समझकर सहन कर लेना ही सच्ची क्षमा है। जाप देने की जो माला होती है, उसमें 108 मोती के अलावा तीन मोती 'सम्यग्दर्शनाय नमः, सम्यग्ज्ञानाय नमः, सम्यक्चारित्राय नमः' के होते हैं तथा जो गाँठ होती है, उसे मरू की गाँठ कहते हैं | मेरू महाराज विमलनाथ भगवान के प्रमख गणधर थ। वे जब ध्यान में लीन थे, तब उनके ऊपर से एक विद्याधर विमान द्वारा कहीं जा रहा था। महाराज के ऊपर आत ही उसका विमान रुक गया | अपने पूर्वभव का बैरी जानकर उसने एक एसा भयंकर अस्त्र महाराज के ऊपर छाड़ा कि जो महाराज के निकट आने पर 8 से 16, 16 से 32, 32 स 64, दुगना - दुगना बढ़ता ही जाता था | यदि वह अस्त्र महाराज को लगता तो वह उन्हें छलनी-छलनी कर देता। पर किसी दूसरे विद्याधर न उसे बीच में ही रोक दिया। उसी समय मुनिराज शुक्लध्यान में लीन हो गये और उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हो गई। केवलज्ञान होत ही सौधर्म इन्द्र उनकी स्तुति करने नीचे आया और बाला- हे भगवन् ! उस विद्याधर ने ऐसा क्यों किया? विद्याधरणी के मना करने पर भी उसने वह अस्त्र क्यों छाड़ा? कवलज्ञानी भगवान् बोल-मैं पूर्व भव में राजा था और किसी अपराध के कारण मैंने उसे (78)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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