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________________ सत्तर हाथियों का बल और आ गया है | तूने बिगाड़ने का परिणाम किया, क्रोध करने का परिणाम किया, लेकिन बिगाड़ नहीं पाया। इस दृष्टांत से हमें यही शिक्षा लेनी है कि क्रोध न करना ही उचित है। ____ 'मेरी भावना' में कितनी बड़ी बात कही-'दुर्जन क्रूर कुमार्ग रतों पर, क्षोभ नहीं मुझको आवे |' कोई प्रश्न कर सकता है कि उन पर तो क्षोभ आना चाहिये न, जो कुमार्गी हैं? आचार्य कहते हैं - नहीं । जो कुमार्गी हैं। उन पर भी क्षोभित होने की आवश्यकता नहीं। उनक प्रति मध्यस्थ होने की आवश्यकता है। कर्मादय में समता रखना, क्रोध नहीं करना, किसी के साथ वैर विरोध की भावना का नहीं होना, क्षमा कहलाती है। पार्श्वनाथ के ऊपर उपसर्ग करने के लिए कमठ आया। पार्श्वनाथ चाहते ता एक टेढ़ी दृष्टि से कमठ को देख लेते तो कमठ झुक जाता। भावी जिनदेव का अकाल मरण कराने की क्षमता किसी में नहीं है | भावी जिनदव को दुनिया की कोई ताकत भस्म नहीं कर सकती। पार्श्वनाथ एक बार टेढ़ी दृष्टि कर लेते तो कमठ भी चिल्लाता हुआ चरणों में लोट जाता | लेकिन टेढ़ी दृष्टि करके किसी को झुकाया तो क्या झुकाया? नासा दृष्टि रखकर झुकाना ही झुकाना है | टेढ़ी दृष्टि करक तो दुनिया झुका लती है। जो नासादृष्टि करके झुकाता है, उसे अपन भगवान कहते हैं। जो टेढ़ी दृष्टि करके झुकाता है उस खल कहते हैं, रावण कहते हैं, राक्षस कहते हैं। जो नासादृष्टि करके झुकाता है, वह राम कहलाता है | झुका दोनो ही रहे हैं, लेकिन दानां के झुकान का फर्क कितना है? दोनों ने आँखों-आँखों ही में झुकाया है, लेकिन एक ने टेढ़ी और कुपित दृष्टि करके झुकाया है और एक ने नासादृष्टि करके समता परिणाम से झुकाया है | जो समता परिणाम से झुकाता है, झुकनवाला उसका उपकार (64)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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