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________________ है । जैसे ही वह नागदेवता पूछते हैं कि सच बता, तू कौन है? मेरे जहर के कारण तेरा जहर उतर रहा है, यह मामला क्या है? वह कहते हैं कि मैं पवित्र मानव हूँ । इसी भव से मोक्ष प्राप्त करूँगा । मैं पाण्डवों में मध्यम पुत्र हूँ । मेरे साथ ऐसी घटना घटी, लेकिन मेरा दुर्योधन के प्रति कोई छल-कपट नहीं था । मैंने दुर्योधन का कभी कुछ बिगाड़ना नहीं चाहा, लेकिन दुर्योधन मेरा हमेशा बिगाड़ सोचता रहता है । इस दुर्योधन की वजह से मेरी यह दशा हुई है । लेकिन मेरा दुर्योधन के प्रति किंचित भी बैरभाव नहीं है, इसलिये मेरे अन्दर इतनी शक्ति जगी है कि मेरे अंदर विष अमृत का काम कर रहा है । जो व्यक्ति दूसरे का बुरा नहीं विचारते, जो दूसरे का अहित नहीं करत, जो दूसरे का विनाश नहीं करते, उन व्यक्तियों का दुनिया की कोई भी ताकत विनाश नहीं कर सकती । पाण्डुपुत्र कहता है-मैंने कभी दुर्योधन का अहित नहीं किया । हे नागदेवता! मैंने स्वप्न में भी किसी को मार देने का परिणाम नहीं किया, इसलिये आपके द्वारा छोड़ा गया जहर भी मुझे अमृत का काम कर रहा है। यदि मैंने किसी को जहर देने का काम किया होता तो मैं भी साधारण जहर से ही मर गया होता, तुम्हारा जहर तो बहुत बाद की बात है । नागदेवता कहते हैं कि मैं तुमसे प्रसन्न हूँ, लो ये अमृत पी लो । जितने कटोरे अमृत पी लेगा, उससे दस गुना हाथियों का बल तुझमें आ जायेगा। भीम वैसे ही बलवान, और फिर एक कटोरे में दस-दस हाथियों का बल है । भीम बैठ गया पीने और सात कटोर बिना श्वाँस के डकार गया और जैसे ही सात कटोरे बिना श्वाँस के डकारे तो उसमें सत्तर हाथियों का बल आ गया। सत्तर हाथियों का बल लेकर गंगा में से निकलता है और कहता है-कहाँ है दुर्योधन? देख ले, तूने मुझे समाप्त करने का प्रयास किया था परन्तु अब मुझमें 63
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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