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________________ निर्विकल्प समाधि - पूर्वक सल्लेखना को धारण करते हैं। ऐसे चरणानुयोग के शास्त्रों को सम्यग्ज्ञान जानता है । जीवाजीव सुतत्तवे पुण्यापुण्ये च बन्धमोक्षौ च । द्रव्यानुयोग दीपः श्रुतविद्यालोकमतानुते || जीव, अजीव, सुतत्त्व को, बंध, मोक्ष को और श्रुतज्ञानरूपी प्रकाश को भी द्रव्यानुयोगरूपी दीपक विस्तारता है, कथन करता है । ऐसे द्रव्यानुयोग के शास्त्रों को भी सग्यग्ज्ञान जानता है । द्रव्यानुयोग के ग्रन्थों में षद्रव्यों, सप्ततत्त्वों, नव पदार्थों और जीव के स्वभावों तथा विभावों का वर्णन है, जिससे जीव को वैभाविक भावों को त्यागने और स्वाभाविक भावों को प्राप्त करने की रुचि हो । चारों अनुयोगों के ग्रंथों का स्वाध्याय करने से आत्मकल्याण करने की प्रेरणा मिलती है । प्रथमानुयोग के अध्ययन की उपयोगिता का दिग्दर्शन श्री सहजानन्द वर्णी जी ने लिखा है- आचार्यों संतों ने जो चार अनुयोगों में ग्रन्थों का निर्माण किया, तो यों ही फोकट बात न समझिये | उनसे बड़ा बल है। कहीं ऐसा एक एकान्त न बनायें कि कोई एक यही अनुयोग, बस यही यही देखो, यही पढ़ो, यही सुनो। अरे! उसके शब्द रट गए तो कहो ठठेरे के कबूतर - जैसे बन गये । उसके शब्दों से भीतर के परिवर्तन नहीं हो पायें, कषाय जैसी - की तैसी जग रही और कहो कषाय दबी रहती है, तो जब कषाय उगलती है, तो तेज उगलती है । तो एक पक्ष ही तो मत पकड़ो। अरे! सभी अनुयोगों का आदर करें। प्रथमानुयोग के ग्रन्थ पढ़ने से, चरित्र पढ़ने से एक उत्साह जगता है । हम आप लोग धर्मपालन के प्रसंग में उत्साह क्यों नहीं कर रहे कि हम चारों प्रकार के अनुयोगों का उपयोग नहीं करते । जब कोई चरित्र पढ़ते, मान लो श्रीराम का 766 —
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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