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________________ सकता, जब तक कि हमें सम्यग्ज्ञान सुलभ नहीं होता । एक लड़का रोता है कि हमें हाथी चाहिए । पिता ने हाथी दूसरे का लाकर घर के आँगन में बाँध दिया। उसे फिर भी सन्तोष नहीं हुआ और बोला- यह हाथी मेरे लोटे में रख दो। पर वह यह नहीं जानता कि यह मेरी इच्छा पूर्ण होना असंभव है। वह रोता है, तो इसका क्या उपाय है? उपाय यही है कि उसे यह ज्ञान हो जाय कि हाथी लोट में नहीं आ सकता। वैसे ही यह जीव ऐसी इच्छा करता है, जो पूर्ण नहीं हो सकती और फिर दुःखी होता हैं । दुःख निवारण का उपाय यही है कि उसे सम्यग्ज्ञान प्राप्त करना चाहिये । ज्ञान की प्राप्ति और उसका उपयोग सर्वोत्तम कार्य है । और अन्य काम सब निरर्थक हैं । आचार्य अमृतचन्द्रजी कहते हैं कि एक उस ज्ञान का आस्वादन करो, जहाँ दुःख या शोक ही नहीं है । यही विचारो "हूँ स्वतन्त्र निश्चल निष्काम, ज्ञाता दृष्टा आतमराम," तो कोई आपत्ति ही नहीं । भूल तो दृष्टि में है और सुख - दुःख उसी के परिणाम हैं । कोई भी काम करो, पर आनन्द केवल आपको ज्ञान में ही आयेगा, आत्मा ज्ञान के अतिरिक्त कुछ करता ही नहीं । सदा अपने को भार रहित अनुभव करो | एक मात्र धर्म और ज्ञान ही ऐसी चीज है जो अगले भव के लिए जाती है । अब हमें ममत्व और पर्यायदृष्टि हटाकर ज्ञान की सेवा और उसका उपार्जन करना चाहिये, इसी में हमारी भलाई है । भैया ! स्वाध्याय उत्तम हुआ, इसकी पहिचान तो चर्या है। यदि चर्या सुखद न हुई, तो ज्ञान से लाभ क्या हुआ ? स्वाध्याय का फल तो सच्ची समझ है, जिससे कषायें स्वयं क्षीण होने लगती हैं । जिसे सम्यग्ज्ञान प्राप्त हो गया, उसके जीवन में परिवर्तन निश्चित रूप से आता है । और वह सारा परिवर्तन स्वाभाविक होता है । हम यदि ऐसा कहें कि परपदार्थ मेरा नहीं है, परन्तु अनुभव में यही आये 750
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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