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________________ ब्रह्मचर्य सच्चा हो तो ये आम पक जायं, और उस वृक्ष के सारे आम पक गये । उस बहू की धर्म और ब्रह्मचर्य की दृढ़ श्रद्धा देखकर राजा का हृदय परिवर्तन हो गया और उसने बहू से माँफी माँगी । ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने के लिये अपने मन को सदा पवित्र रखना चाहिये। जिस प्रकार खेत की रक्षा बाड़ लगाकर करते है, उसी प्रकार हमें अपने शील की रक्षा नव वाड़ पूर्वक करनी चाहिये । ब्रह्मचर्य, धर्मो का सार है, अगर ब्रह्मचर्य नहीं है, तो सारी-कीसारी क्रियायें निष्फल हो जाती हैं । हमारा ब्रह्मचर्य, मन, वचन, काय तीनों से होना चाहिये। आज हम भले ही काय और वचन से पालन कर लें, लेकिन मन से पालन करना कठिन है । ब्रह्मचर्य पालन नहीं कर सकता । व्यक्ति सबसे अधिक पाप मन से करता है । आज मन को वश में करना बहुत कठिन है। आज हम देखते हैं, जगह-जगह अब्रह्म के कारण मिल जाते हैं। रास्ते में न जाने कितने अबह्म के परिणाम आने के निमित्त मिल जाते हैं । ऐलक श्री वरदत्त सागर जी महाराज ने लिखा है कामासक्त व्यक्ति समस्त धर्म-कर्म भूल जाता है, इसलिये कहा भी है। — - प्यास न देखे धोबी घाट, भूख न देखे झूठो भात । नींद न देखे टूटी खाट, काम न देखे जात कुजात ।। कामी व्यक्ति को अंधे के समान कहा है कि जिस प्रकार अंधे को नहीं दिखता, उसी प्रकार कामी व्यक्ति को भी यह कार्य मुझे करने योग्य है कि नहीं, उसके पास आँखें होने के बाद भी वह अंधे के समान हो जाता है, उसे कुछ भी नजर नहीं आता, वह सब कुछ भूल जाता है, यहाँ तक की काम के वशीभूत होकर दूसरों के प्राण भी ले लेता है तथा तलवारें और पिस्तौलें चल जाती हैं, और माता-पिता 675
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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