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________________ तक मैं भोजन नहीं करूंगी! अनशन धारण करती हूँ | उसकी इस कठोर प्रतिज्ञा एवं शील के महात्म्य से नगर-रक्षक देव को क्षोभ उत्पन्न हुआ | उसने आकर कहा- "हे सती! तू व्यर्थ ही अपने प्राणों का विसर्जन मत कर | मैं रात को ही नगर के दरवाजे कीलित करके राजा, मंत्री तथा नगर क मुख्य लोगों का स्वप्न देता हूँ कि जो नगर के दरवाजे कीलित हो गये हैं, वे किसी महासती के बाँयें पैर के स्पर्श होने से खुलेंग। इस प्रकार कहकर देव चला गया। उसने दरवाजे कीलित करके राजा आदि को स्वप्न दिया। प्रातः काल दरवाजों को कीलित देख राजा ने अपने स्पप्न के अनुसार नगर की सभी स्त्रियों को बुलाकर दरवाजों को स्पर्श कराया लेकिन दरवाजे नहीं खुले । तब राजा न बड़े सम्मान के साथ नीली को बुलवाया । नीली भी जिनेन्द्र अर्चना करके दरवाजे के पास गई और उसने अपने बांये पैर से दरवाजे को स्पर्श किया | नीली के स्पर्श करते ही दरवाजे खुल गये एवं नीली का सतीत्व प्रगट हो गया । इसी प्रकार सती मनारमा ने अपने शील की परीक्षा दी और परीक्षा में सफल हो जगत् में शील के महात्म्य को प्रकट किया, अपने शील में लगे अपवाद का दूर किया। इसी प्रकार की घटना “पद्मपुराण" में रानी सिंहिका की आती है। राजा सुकौशल के पौत्र नघोष अयोध्या का राज्य नीतिपूर्वक कर रह थे। एक बार राजा नघोष अपनी सिंहिका नामक रानी को अयोध्या में छोड़कर उत्तर दिशा के राजा को जीतने के लिये निकले | इधर राजा को युद्ध में जाते देख, दक्षिण दिशा के राजा ने बहुत बड़ी सेना ले कर अयोध्या पर चढ़ाई कर दी। शस्त्र विद्या और शास्त्र विद्या दोनों में निपुण महाप्रतापिनी रानी ने बड़ी फौज ले कर दक्षिण दिशा के राजा से युद्ध किया तथा विजय पताका लहरात नगर में प्रवेश (667)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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