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________________ विवाह कर दिया । नीली को प्राप्त करने के बाद दोनों पिता पुत्र पुनः बुद्ध के भक्त बन गये। जिनदत्त यह देख बहुत दुःखी हुआ । वह पश्चात्ताप करने लगा - "हाय । मैं अपनी पुत्री को मिथ्यात्वी को देने की अपेक्षा कुँए में धकेल देता तो ज्यादा अच्छा होता। ओहो। मैंने इस मूर्ख मिथ्यात्वी को अपनी कन्या क्यों दे दी?" एक दिन नीली को बौद्ध बनाने की इच्छा से सेठ समुद्रदत्त बाला "बेटी नीली । हमारे गुरु बहुत ज्ञानी है, उन्हें तुम निमन्त्रित करके भोजन कराओ ।" नीली ने बात स्वीकार कर ली और बौद्ध भिक्षुओं को निमन्त्रण देकर के भोजन करवाया। जब वे भोजन कर रहे थे, तभी नीली ने उनके ज्ञान की परीक्षा के लिये गुप्त रूप से उनकी एक-एक जूती मँगवाई और उसके छोटे-छोटे टुकड़े कर घी - बूरे में पकाकर उनको खिला दी । जब भिक्षु जाने लगे तो अपनी एक - एक जूती को न देख क्रोधित हुये और बोले हमारी एक-एक जूती कहाँ है? इसके उत्तर में ही नीली ने कहा "आप बड़े ज्ञानी विद्वान् हैं, आप ही बताइये कि जूती कहाँ है और यदि नहीं जानते हैं, तो सुनिये आपकी जूती आपके पेट में ही हैं । यह सुन क्रोधित हो सब भिक्षुओं ने किसी उपाय से जबरदस्ती वमन किया तथा वमन में चमड़े के छोटे-छोटे टुकड़े देख लज्जित तथा व्याकुल हो, अपने स्थान पर चले गये । ली के कारण भिक्षुओं का अपमान देख सारे घर वालों ने रुष्ट होकर "नीली परपुरुषगामी है" इस प्रकार का झूठा दोष लगा दिया । कुछ ही दिनों में यह बात पूरे नगर में फैल गई । अपने लांछन को दूर करने के लिये नीली ने भगवान के सामने प्रतिज्ञा की । हे भगवन्! जब तक मेरा यह लांछन ( अपवाद) समाप्त नहीं होगा, तब 666
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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