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________________ ने तुरन्त कूदकर उसे बाहर निकाल दिया । वृद्ध भिक्षु बाला-तूने यह क्या किया? युवा लड़की का अपने हाथ में उठा लिया, तुझे प्रायश्चित्त लेना पड़ेगा। वह उसे रास्ते भर तंग करता रहा और आश्रम में आकर अपने गुरु से उसकी शिकायत कर दी। तब गुरु बोले-प्रायश्चित्त उसे नहीं तुम्हें मिलेगा, क्योंकि उसने तो उसे निकाल कर वहीं छोड़ दिया पर तुम ता उसे यहाँ तक ले आये हा । अभी भी वह तुम्हारे मन में है। जिसका मन पवित्र होता है, वही इस शील व्रत का पालन कर सकता है। सव्वंग पेच्छं तो इत्थी णं तासु मुयदि द्रव्यावम् | सा बम्ह चेर यावं सुक्कदि खलु दुद्धरं धरदि ।। जो पवित्रात्मा स्त्रियों के सर्वांगों को देखकर अपने परिणामों को विकृत नहीं होने दता, वास्तव में उसक दुद्धर ब्रह्मचर्य धर्म है | यह ब्रह्मचर्य नाम का व्रत बड़ा दुर्द्धर है | जो विषयों क वश होने से आत्मज्ञान स रहित हैं, वे इसे धारण करने में समर्थ नहीं हैं | जो मनुष्यों में देव के समान हैं, वे भी इसे धारण करने में समर्थ नहीं हैं। जिसके ब्रह्मचर्य हाता है, उसे समस्त इन्द्रियों तथा कषायों को जीतना सुलभ है। शील की महिमा का वर्णन करते हुये कवि ने लिखा है - शील बड़ा जग में हथियार, जुशील की उपमा काहे को दीजे | ज्ञान कहे नहिं शील बराबर, तातें सदा दृढ़ शील धरीजे ।। शील से बड़ा हथियार संसार में दूसरा नहीं है फिर शील की उपमा किससे दी जा सकती है? अर्थात् नहीं दी जा सकती है | शील के बाराबर कुछ भी नहीं है। इसलिये शीलव्रत का सदा दृढ़ता से पालन करना चाहिये। (639)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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