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________________ भी बहुत स्यानी है। आलस्य आता है आपको | क्या करें महाराज! कर्म का उदय ही है। कई लोग कहते हैं ऐसा । हाँ, भैया! कर्म का उदय है। किन्तु समझो ता सही, क्या होता है? निद्रा वहीं पर क्यों आती है? आलस्य वहीं पर क्यों आता है? एक व्यक्ति ने कहा - जैसे ही मैं सामायिक करने बैठता हूँ, जाप करने बैठता हूँ, स्वाध्याय करने के लिये सभा में आ जाता हूँ, तो निद्रा आ धमकती है। मुझे सोना ही पड़ता है। अच्छा, बहुत स्यानी है आपकी निद्रा। आपके कर्म भी बहुत सयाने हैं कि ऐसे स्थान पर आने पर ही निद्रा आती है | इसमें कुछ-न-कुछ रहस्य अवश्य है । उन्होंने उनसे पूछा कि - जिस समय आप दुकान में बैठते हैं और नोट के बंडल गिनते हैं, उस समय कभी निद्रा आई है? महाराज! उस समय (वहाँ पर) तो भूलकर भी नहीं आती | अच्छा, यह अर्थ है। वहाँ पर नहीं आती? और यहाँ पर आती है, ता निद्रा को भी इस प्रकार अभ्यास कराया है आपने, यहाँ पर आत ही नींद लेना है, सुनना नहीं है। एक शास्त्र सभा जुड़ी थी। एक दिन एक व्यक्ति को पंडित जी ने पूछा-क्यों, भैया! सो तो नहीं रहे हो? वह कहता है – नहीं। पर वह ऊंघ रहा था। जब एक बार, दो बार, तीन बार ऐसे ही पूछा तो उसन भी वही जवाब दिया। फिर पंडित जी बोल – सुन तो नहीं रहे हो, भैया? उसने तुरन्त उत्तर दिया - नहीं तो । ठीक है, भैया । ऐसे पकड़ में आये | सीधे-सीधे पूछने पर थोड़े पकड़ में आयेंगे आप लोग | यहाँ पर आचार्य कुन्दकुन्द महाराज कह रह हैं – 'समयसार' पढ़ रहे हो? हाँ पढ़ रह हैं। पढ़ रहे हा – ता परिवर्तन क्यों नहीं आ रहा? 'समयसार' पूरी पढ़ने की भी कोई आवश्यकता नहीं है, एक गाथा ही पर्याप्त है। पूरी तो इसलिय कि उसमें उन्होंने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति किया है, मूर्त रूप दिया है, शब्द रूप दे (637)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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