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________________ एक बार एक लड़की ने मुनिराज के समीप कृष्णपक्ष में ब्रह्मचर्य व्रत लिया और एक लड़के ने शुक्लपक्ष में ब्रह्मचर्य व्रत लिया । संयोगवश दोनों की शादी हो गयी। शादी के बाद लड़की ने कहा कि मेरा कृष्णपक्ष में ब्रह्मचर्य व्रत है और लड़के ने कहा मेरा शुक्लपक्ष में ब्रह्मचर्य व्रत है । दोनों प्रसन्न हुये | तब दोनों ने निर्णय किया कि हम दोनो अखंड ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करेंगे, पर यह बात बाहर नहीं फैलना चाहिये । इस प्रकार दृढ संकल्प करके असिधारा के सदृश कठोर ब्रह्मचर्य व्रत का पलान करने लगे। कुछ दिन बाद माता-पिता को यह चिन्ता हुई कि लड़के - बहू के संतान क्यों नहीं होती है । दोनों ने सोचा कि तीर्थ क्षेत्रों की वन्दना करनी चाहिये। वे दोनों यात्रा के लिये निकल गये । एक दिन एक बुढ़िया ने पानी छानकर जीवानी जमीन पर गिरा दी और प्रायश्चित्त लेने मुनिराज के समीप पहुँची। मुनिराज ने कहा कि अखंड ब्रह्मचर्य व्रत के धारण करने वाले व्यक्ति को भोजन कराना। जिस दिन तुम्हारा काला चंदोवा सफेद हो जायेगा, उस दिन समझना तेरा प्रायश्चित्त पूरा हो गया । उस दिन से उस बुढ़िया ने सभी त्यागी व्रती ब्रह्मचारियों को भोजन कराना प्रारम्भ कर दिया । उसने सभी को भोजन करा दिया किन्तु चंदोवा ज्यों-का-त्यों काला - का - काला रहा, वह सफेद नहीं हुआ । गाँव के सभी व्यक्तियों को भोजन करा दिया, फिर भी चंदोना ज्यों-का-त्यों । यह दोनों भी यात्रा करते हुये मंदिर में पहुँचे । बुढ़िया राह देख रही थी कि कोई रह तो नहीं गया । उसने उन दोनों को भी निमंत्रण दे दिया । बुढ़िया भोजन कराती और चंदोवा देखती जाती । इन दोनों ने आधा भोजन भी नहीं किया कि चंदोवा काले से सफेद हो गया । बुढ़िया का मन आनन्द से भर उठा और उनका भी भेद खुल 620
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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