SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 610
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जाकर उस युवक की नाड़ी पकड़ी और कहा मुझे मालूम चल गया है। उसे क्या रोग है, और मेरे पास इसकी दवा भी है । परन्तु यह दवा इसको नहीं, किसी दूसरे को पीना होगी, जिससे यह जिन्दा हो जायेगा, और दवा पीने वाला मर जायेगा । संत नं एक पुड़िया अपनी छोली से निकाल कर एक कटोरी पानी मं उसे घोला और सर्व प्रथम माता-पिता से कहा कि तुम में से कोई एक इसको पी लो, तुम वैसे भी वृद्ध हो ही गये हो, तुम्हारा बेटा अभी जवान है, उसकी पत्नी है, बहुत लम्बी उसकी जिन्दगी अभी बाकी है, तुम्हारी जिन्दगी में तो एक-दो वर्ष ही बचे हैं । तब माता-पिता कहते हैं कि बेटा तो मर ही गया, हम क्यों मरें, हम इन तीन और बेटों को देखकर जी लेंगे, एक बेटे के मर जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता । फिर संत ने भाई और भाभी से कहा कि तुम में से ही कोई इसे पी लो ताकि तुम्हारा यह प्यारा भाई जिन्दा हो जाये। तब उन भाइयों एवं भाभियों ने कहा कि हम चार भाई न सही तीन भाई ही सही, ये तो मर ही गया है, इसके चक्कर में हम क्यों हमारी खुशहाल जिन्दगी बेमतलब में समाप्त करें। फिर संत ने पत्नी से कहा कि तुम ही उसे पी लो, क्योंकि अभी तुम ही कह रही थीं कि अगर आपको कुछ हो गया तो मैं प्राणों का त्याग कर दूंगी, तुम्हारे बिना जीवन बेकार है, बेटी! ये तुम्हारे प्राणों से भी प्रिय हैं, इसलिये तुम ही अपने पति का जीवन बचा सकती हो, लो बेटी तुम ही इसे पी लो ताकि तुम्हारे पति जीवित हो जायें। तब पत्नी कहती है कि नहीं गुरुदेव, मैं इसे नहीं पी सकती, अब वो तो मर ही गये हैं, मैं अभी जवान हूँ, कोई दूसरी शादी कर लूँगी, अभी मुझे बहुत जीना है, मेरी अभी उम्र ही क्या है, मैंने अभी दुनिया में देखा ही क्या है, मुझे बहुत जीना है । सब की बातें सुन कर संत ने कहा कि ठीक है आप लोग यदि 595
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy