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________________ माता-पिता हैं, चार भाई हैं, दो बहने हैं, पत्नी है, दो भाभियाँ हैं । और ये सभी मुझे प्राणों से अधिक चाहते हैं । उनकी आत्मीयता में मुझे रंचमात्र भी संदेह नहीं है। संत ने कहा- तुम हमारे पास एक दिन के लिये रुक जाओ और जैसा हम कहते हैं वैसा तुम करो, तुम्हें फिर मालूम पड़ जायेगा कि तुम्हारे घर वाले तुम्हें कितना चाहते हैं । श्रावक एक दिन संत के पास रुक गया । और उसको संत ने एक दिन में श्वास रोकना सिखा दिया और कहा कि तुम घर पर जाकर बीमारी का बहाना बना कर लेट जाना, कुछ समय बाद श्वास रोक लेना। युवक घर गया और जैसा संत ने कहा था वैसा ही किया । बीमारी का प्रदर्शन करता हुआ वह श्रावक अचेत होकर गिर पड़ा । घर के सारे सदस्य घबड़ा गये, सबने अपनी-अपनी शक्ति अनुसार उपचार करने का प्रयास किया, डाक्टर, वैद्य के उपचार से भी कोई लाभ नहीं हुआ । और उसकी श्वास बंद हो गई। अब तो उस परिवार के सभी लोग रोने लगे, विलाप करने लगे, पत्नी रोती हुई कहती है- अब इस संसार में कोई नहीं है, हे स्वामी! मैं तुम्हारे बिना कैसे जिन्दा रह पाऊँगी, मैं भी तुम्हारे साथ ही मर जाऊँगी, तुम्हारे बिना तो हमारा जीने का कोई मतलब ही नहीं है । माता - पिता भी कहते हैं - बेटा तुझे क्या हो गया, अगर तुझे कुछ हो गया तो हम दोनों प्राण तज देंगे, भाई और भाभियाँ, बहनें भी यही कहते हुये विलाप करने लगीं । उसी समय वे सन्त वहाँ से निकले और रोन की आवाज सुनकर उनके घर में चले गये, परिवार वालों पूछा कि आप लोग क्यों रो रहे हैं, क्या बात हो गई है, क्या कोई मर गया है? लोगों ने कहा हमारा प्राणों से भी अधिक प्यारा बेटा अचेत पड़ा है, कई वैद्य और डाक्टरों ने देखा पर बीमारी पकड़ में ही नहीं आई है। सन्त ने 594
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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