SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 600
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इसलिये कहा है "मम इदं इति इस प्रकार जो आपका परिणाम है, जो ममत्व का परिणाम है, जो आपका ममत्व का परिणाम पर-पदार्थों के प्रति होता है, वही आपको दुःख दता है, वही आपको आकिंचन्यता में बाधक होता है। अरहंत भगवान समवशरण में रहते हैं और समवशरण में इतनी विभूति रहती है कि संसार में चक्रवर्ती के पास भी इतनी विभूति नहीं रहती है। इतनी सारी विभूति होने के बाद भी भगवान आकिंचन्यता का बोध करते हैं। मात्र बाह्य परिग्रह से ही व्यक्ति परिग्रही नहीं होता है। उस पदार्थ के प्रति तुम्हारा जो ममत्व का परिणाम चल रहा है, वही आपको परिग्रही बतला रहा है। भले ही आप सब कुछ त्याग कर दें, मुनि महाराज भी बन जायें, और आप सोचं कि निष्परिग्रही हो जायें, आकिंचन्यता का प्राप्त कर लें, तो ये नहीं कर सकते, अगर ममत्व का आपका परिणाम बना हुआ हा तो। एक मुनि महाराज एक शिला पर बैठे हुये हैं, बहुत सारे राजा-महाराजा, महाराज का नमस्कार करने के लिय आये और लौट करके चले गये | जान क बाद किसी ने पान खा रखा होगा और पान की पीक वहाँ पर थूक दी, जैसे ही रात्रि हुई चन्द्रमा निकला, वह पान की पीक चाँदनी में बार-बार चमक रही थी। महाराज ने उस पर दृष्टि डाली और बार-बार विचार किया कि हम अपनी रानी को कीमती हीरा देकर के आये थे, ये यहाँ पर कैसे आ गया। महाराज को ऐसा विचार नहीं आना चाहिये, और यदि ऐसा विचार आ रहा है, तो वो महाराज नही हैं। ___अर! जब आपने घर-परिवार सब कुछ छोड़ दिया है, तब ये विचार क्यों आ रहे हैं? और महाराज धीरे-धीरे उसके नजदीक 585)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy