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________________ लिये रानियाँ चन्दन घिस रही हैं। राजा को शोर अच्छा नहीं लग रहा था, अतः बोला यह शोर बन्द करो। रानियों न एक-एक चूड़ी को छोड़ कर, शेष चूड़ियाँ उतार दी, जिससे चूड़ियों के खनकने की आवाज बन्द हो गई। राजा बोला-क्या चन्दन घिसा जाना बन्द हो गया है। मंत्री बोला-महाराज चन्दन तो अभी भी घिसा जा रहा है पर रानियों ने सिर्फ एक-एक चूड़ी छोड़कर शेष चडियों को उतार दिया है। राजा का शोर बन्द हो जाने से बड़ी शान्ति महसूस हो रही थी। राजा को बात समझ में आ गई, वह एकत्व भावना का चिन्तवन करने लगा। वह विचार करने लगा। एकत्व में ही शान्ति है अपने स्वभाव के अलावा जितने भी पर भाव हैं, वे ही अशांति के कारण हैं | और उस राजा ने सुबह रोग दूर होते ही, वन में जाकर दीक्षा लेकर अपना कल्याण किया । धर्म का सम्बन्ध केवल अपने एकत्व से होता है, अकेलेपन से होता है | आकिंचन्य भाव वहाँ है, जहाँ इन्द्रिय-विषयों की निवृत्ति है, देह की ममता का त्याग है | सीधी बात है, सबको भूल जायें और स्वाधीन आनन्द भोग लें। यदि किसी का ख्याल बनाये रहें, ता क्लेश भाग लें। संसार में जितने भी अत्याचार, अन्याय आदि महापातक होते हैं, उनका मुख्य कारण, यह परिग्रह की आसक्ति ही है। इसलिये परिग्रह के लोभ का त्यागकर, ज्ञानापार्जन व शीलादि गुणों का लाभ करो | जिससे हमारी आत्मा इस मनुष्य जन्म में भी आनन्द का अनुभव करे और पर भव में कैवल्यादि विभूति का भोगने वाला बने | जिसने समस्त जगत से भिन्न, ज्ञान स्वभाव निज आत्मा को पहचाना, आकिंचन्य धर्म उसी के होता है। पर्याय में बुद्धि हो, श्रद्धा (562
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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