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________________ करता है कि जब यह शरीर ही मेरा नहीं है तो दूसरे पदार्थ मरे कैसे हो सकत हैं। चर्म को पृथक कर देने पर रोम शरीर में कैसे रह सकते हैं। वास्तव में यहाँ किसी का कुछ भी नहीं है | मोह के कारण यह अज्ञानी जीव पर वस्तुओं को अपनी मानता है और जगजाल में ही फँसा रहता है। कोई किसी से बंधा है क्या? अरे कोई किसी से बंधा हुआ नहीं है। केवल खुद ही कल्पनायें करके, विकल्प बना लिया है। विकल्प बन जाने से अपने आकिंचन्य स्वरूप को न समझ पाने के कारण मोह हो गया है और मोह में आकर ही पर से बंध गया है। सुकौशल राजकुमार अपनी कुमार अवस्था में विरक्त हो गये । वह घर छोड़कर चल दिये | देखो राजकुमार की अवस्था छोटी थी वे अपनी माँ से, पत्नी से व साम्राज्य सुख से, विलग हो गये | मंत्री जनों ने उन्हें बहुत समझाया, अन्य लोगों ने भी बहुत समझाया पर वे न माने | उन्हें ज्ञान हा गया था, वे अपनी आत्मा में ही लीन होना चाहते थे। तब फिर दूसरों का असर उनक ऊपर किस प्रकार से हो सकता था। मंत्रियों ने राजकुमार को बहुत समझाया कि आपकी पत्नी के गर्भ है, बच्चा तो हो जाने दो, फिर बाद में चले जाना, बटा उस बच्चे को राजतिलक दिय जाओ। दुनिया को यह बता जाओ कि मैं बच्चे को राजतिलक दे रहा हूँ | इसलिये ह महाराज! अभी इतनी जल्दी मत जाआ | भले ही दा-तीन माह बाद चल जाना | राजकुमार सुकौशल कहते हैं कि अच्छा गर्भ में जो सन्तान है, उस मैं तिलक किये दता हूँ | जो गर्भ में सन्तान है, उसे मैं राजा बनाये देता हूँ | एसा कहकर सुकौशल राज कुमार विरक्त हो गये। जिसने आकिंचन्य धर्म का प्राप्त कर लिया वही सुखी है नहीं तो आजीवन क्लेश हैं। परिग्रह की लालसा तो दुःख का ही कारण है | (548)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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