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________________ दिया कि सभी सीधा हाथ करके लड्डू खायेंगे, जिसने भी हाथ मोड़कर लड्डू खाया उसे सजा दी जायेगी । सभी विद्वान् सोचने लगे सीधे हाथ से लड्डू कैसे खाये जा सकते हैं । तब एक वृद्ध विद्वान् ने कहा कि ऐसा करो कि तुम मेरे मुँह में लड्डू रख दो और मैं तुम्हारे मुँह में लड्डू रख देता हूँ। ऐसा ही किया गया । जब सब भोजन कर चुके तब राजा ने कहा कि मैंने यह शर्त इसलिये रखी थी कि दूसरों को पहले खाना खिलाकर के फिर स्वयं को खाना चाहिये | भारत की यह प्राचीन संस्कृति है कि अतिथि का आदर-सत्कार करने के बाद ही स्वयं भोजन करो । इसी अतिथि सत्कार की परम्परा को अविछिन्न रूप से चलाने के लिये श्रावकों को द्वार प्रक्षण की क्रिया का विधान आचार्यों ने बताया है । प्रथम चक्रवर्ती महाराज भरत स्वयं नित्यप्रति द्वार प्रेक्षण किया करते थे और बाद में भोजन करते थे । जब नाव में पानी ज्यादा हो जाये और नाव मंझधार में हो पानी उसमें भरता ही जाये तो उस नाव का पानी अपने हाथों से निकालकर फेक देना चाहिये नहीं तो नाव डूबने में ज्यादा देर नहीं लगेगी | इसी प्रकार जिन्दगी की नाव में जब धन का पानी भरता जाये तो उसका उपयोग दान के माध्यम से धार्मिक कार्यों में कर लेना चाहिये जिससे जिन्दगी की नाव किनारे लग सके । ज्ञानी वही है, जो समय रहते धन का सदुपयोग कर लेता है। सभी को अपनी आय का एक निश्चित भाग अवश्य दान के माध्यम धार्मिक कार्यों में खर्च करना चाहिये । धन का भोग, त्यागपूर्वक करना चाहिये । भोग करते समय इतना ध्यान रहे कि ये सब छूटने वाला है, ज्यादा दिन नहीं रहेगा। कब 533
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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