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________________ हैं। इसी दौरान राजा की आँख खुल जाती है और अपनी सब रानियों को युवा साधु के पास बैठा देख शंकालु हो जाता है | ___ वह क्रोध से ग्रसित हो मुनिराज के पास आकर कहता है कि तुम इन मेरी रानियों स क्या व्यर्थ की बातें कह रहे हो? शान्त प्रकृति के मुनि महाराज कहते हैं कि- "मैं इन्हें इनकी इच्छानुसार क्षमाधर्म पर उपदेश दे रहा हूँ"। राजा के मन में सन्देह भरा हुआ था, इसलिये राजा ने क्रोध में आकर एक चाँटा मनि महाराज के गाल पर जड़ दिया और कहता है कि- मैं देखना चाहता हूँ कि तुम्हारा क्षमाधर्म कहाँ है? मुनिराज शान्तिपूर्वक उत्तर देते हैं कि-"क्षमाधर्म मरी आत्मा में स्थित है" | राजा को फिर क्रोध आता है और पास में पड़ा एक डंडा उठाकर उन मुनिराज को मार देता है। कहता है - बताआ, क्षमाधर्म कहाँ है? मुनिराज फिर कहते हैं कि “क्षमाधर्म तो मेरी आत्मा में स्थित है, भाई! तुम्हारे इस डंडे में नहीं है।" इसी प्रकार क्रोध से राजा क्रोधित होता हुआ तीसरी बार उनके दोनों हाथ काट देता है, चौथी बार दोनों पैर काट दता है। किन्तु मुनिराज शान्त रहते हैं और यही कहते हैं कि क्षमा तो मेरी आत्मा में स्थित है | अब राजा को होश आता है, वह सोचन लगता है कि मैंन यह क्या कर डाला? मैंने अपने भ्रमवश मुनिराज को कष्ट दिया । ये तो साक्षात् क्षमा के धारक हैं, धीर, गम्भीर हैं। वह अपने कृत्यों की क्षमा माँगता हुआ उनके सामने गिर पड़ता है | मुनिराज अब फिर कहते हैं कि राजन्! तुमने अपना कार्य किया और मैंने अपना । क्रोध की अन्तिम परिणति तो पश्चात्ताप ही होती है। राजा अनेक प्रकार से पश्चात्ताप करता रहा । हमारे पास अभी भी समय है। हम क्रोध को छोड़कर क्षमाधर्म को धारण कर अपना कल्याण कर सकते हैं | जैसे कोई विद्यार्थी पूरे साल मेहनत न कर और अन्त में परीक्षा के समय 39)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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