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________________ किये जाने पर भी समताभाव से सह लेना उत्तम क्षमा है। कहा भी है-जो नाराज हैं, वे महाराज नहीं और जो महाराज हैं, वे नाराज नहीं। क्रोध को जीतना उत्तम क्षमा है। इस लोक में क्राधादि कषायां के समान अपना घात करनेवाला दूसरा नहीं है | क्रोध धर्म-अधर्म का विचार नष्ट कर देता है। क्रोधी समस्त धर्म का लोप कर देता है | ___ क्रोध तात्कालिक पागलपन है, उत्तजना में किया गया एक दुष्कृत्य है। परन्तु ध्यान रखना उतावलेपन में किया गया कार्य तात्कालिक आनन्द प्रदान करता है पर अपने पीछे अनन्त पश्चाताप को छोड़ जाता है | इसलिए क्रोध को जहर कहा है, बेहाशी कहा है, अग्नि की ज्वाला कहा है, मस्तिष्क की विक्षिप्तता कहा है, क्षय रोग कहा है, क्योंकि यह क्रोध जीव को मारता है, जलाता है, तड़पाता है, पागल बनाता है, शरीर को खोखला करता है, अकुलाहट पैदा करता है, मन, बचन, काय से नियंत्रण को हटाता है, प्रेम-भाव को तिरोहित करता है | यह क्रोध महा भयंकर है | यह क्रोध अपना तथा अन्य का भी घात करता है, धर्म को छोड़ता है, पाप का आचरण करता है, निन्दनीय वचन बुलवाता है | यानि क्रोध न करने योग्य समस्त क्रिया करवा देता है। वह अपने माता-पिता व पूज्य को भी मार डालता एक बार एक युवा मुनिराज राजा के उद्यान में विराजमान थे। उसी बाग में एक दिन राजा किसी कारणवश सो जाते हैं। इनकी रानियाँ भी इसी उद्यान में इधर-उधर घूम रही थीं। साधु को देख भक्तिवश वे मुनिराज के पास आती हैं और उपदेश सुनने की इच्छा से वहीं पास में बैठ जाती हैं | मुनिराज उत्तम क्षमा पर उपदेश देते 38)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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