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________________ कुछ भी पुण्य नहीं हुआ। तब मंत्री ने समझाया, ऐसा लगता है तुम्हार पिताजी ने ये सब दान मान बढ़ाई के लिये दिये हैं। यदि तुमने कुछ दान दिया हो तो इस कागज पर लिख दो | वह सोचता है बड़ी मुश्किल से तो मैंने थोड़े से दाल-चावल दान के लिये दिये थे पर उससे दुगना तो वहाँ खा आया उससे क्या पुण्य होगा? पर क्या करें, उसने वही उस कागज पर लिख दिया। मंत्री ने जैस ही वह कागज तराजू पर रखा, तो पलड़ा नीचे बैठ गया। मंत्री उससे बोला अरे इसमें तो इतना पुण्य है कि हमारे पूरे राज्यकोष की सम्पत्ति भी कम पड़ेगी। वह मंत्री से कहता है | जब मेरे पास इतना पुण्य है तो मुझे यहाँ स कुछ नहीं चाहिये । मुझे ता सब कुछ अपने आप ही मिल जायेगा। वह जैसे ही घर पहुँचा कि मकान की एक दीवार गिर पड़ी और उसमें से हीरे-मोती आदि बहुत-सी सम्पत्ति निकली। इसलिये कहा है-सच्चे भाव पूर्वक दिया गया थोड़ा-सा दान भी बहत फलदायी होता है। और झूठ-मूठ की गप्पों का दान हो तो उसका कोई महत्त्व नहीं होता। एक बड़ा शहर था, वहाँ के मंदिर में आरती की बोली बोली जा रही थी, वहाँ एक दहाती भी पहुँचा। वह सब सुन रहा था। पहली बोली बोली गई तो कोई लगाये 1 मन घी और कोई लगाये 2 मन घी। उन लोगों ने ऐसा नियम बना रखा था कि 2 मन घी के मायने 1 रुपया । कोई 4 मन घी बोल तो उसके मायने 2 रुपया द दो। तो जो अधिक बोली बाल उसको ही मिले | बाली में कोई 4 मन घी बाले कोई 6 मन घी बोले | वह देहाती सोचता है, अर! ये कितन दानी हैं? बड़ा दान करते हैं। वह तिल की गाड़ी ले गया था। उसने भी बाल दिया हमारी एक गाड़ी तिली। अब जब कार्यक्रम समाप्त हो गया, लोग जान लगे तो उसने मंदिर के आगे गाड़ी खड़ी कर दी। (504)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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