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________________ हस्तिनापुर में एक सेठ जी थे, वे दानवीर कहलाते थे। उनका एक ही पुत्र था और वह बुद्धू था उसका नाम धर्म पाल था । यदि कोई 10 हजार दान दता था, तो सेठ जी 20 हजार दान देते थे । मन्दिर या धर्मशाला के लिये यदि कोई 1 लाख दान देता था तो सेठ जी 2 लाख दान देते थे | धन-पैसा था, इसलिये लड़के की शादी हो गई। लड़की भी अच्छी मिल गई। कुछ दिन बाद सेठ जी का देहान्त हो गया। लड़का तो बुद्धू था ही सो कुछ ही दिनों में सारी धन दौलत समाप्त हो गई। उसकी पत्नी ने कहा तुम हमारे मायके चले जाओ, वहाँ का राजा पुण्य गिरवी रखकर धन देता है उससे कुछ ले आओ | वह रास्ते के लिये थाड़े से दाल-चावल लेकर चल दिया। रास्ते में एक जगह मुनि महाराज क दान पर प्रवचन हा रहे थे वह बैठकर सुनने लगा। उसके भाव भी दान देने के हो गये | उसने पास के चौके में वह दाल-चावल दे दिये | चौके वालों ने उसकी खिचड़ी बनाई और उससे कहा आप भी धुल वस्त्र पहनकर पड़गाहन करें। महाराज उसी के सामने आकर खड़े हो गये | सबने आहार दिये | बाद में उससे भी भोजन करने क लिये कहा। पहले तो उसने मना किया पर सबके कहने पर उसने भी वहीं भोजन कर लिया और फिर अपनी ससुराल पहुँचा। वह मन में सोच रहा था मैंने क्या दान दिया? जितना दिया उसका दुगना तो मैंने भोजन कर लिया। ससुराल पहुँचकर उसने वहाँ के मंत्री से कहा मुझे पुण्य गिरवी रखना है। मंत्री जी ने उसे एक कागज दिया और कहा अपने दान इस कागज पर लिख दो | उसन उसके पिता जी ने जो दान दिये थे उनमें से कुछ दान उस कागज पर लिख दिये | मंत्री ने उस कागज को तराजू पर रखा, पर तराजू हिला भी नहीं | मंत्री बोले इससे तो 503)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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