SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राणप्रद रस बनाती हैं, वे अपना काम करना बन्द कर देती हैं, फल यह होता है कि लार के द्वारा भोजन में मिल जाने वाले पाचक रसों का अभाव हा जाता है और चर्म रोग, कब्जियत आदि बीमारियाँ पनपने लगती हैं | क्रोधी व्यक्ति स्वतः अनेक रागों को आमंत्रण दता है | जा व्यक्ति क्रोध नहीं करता, उसके सभी प्राणी सहज ही मित्र बन जाते हैं। न्यूयार्क में वैज्ञानिकों ने एक परीक्षण किया कि क्रोधी व्यक्ति के रक्त में कितना जहर फैल जाता है। उन्होंने एक क्राधी व्यक्ति के रक्त का निकाला और उसके रक्त को एक खरगोश का लगा दिया। शान्त मजे से बैठा खरगोश गाजर खा रहा था। जैस ही उस क्रोधी व्यक्ति के रक्त को खरगोश में लगाया, वैसे ही वह खरगोश उचकने लगा, भागने लगा, दांत किटकिटाने लगा, झपटने लगा और अपने शरीर के बालों का नाचने लगा। उसने घण्टे भर में भयंकर रूप धारण कर लिया और थोड़ी देर के बाद मरण को प्राप्त हो गया | देखो, क्रोधी का जरा सा रक्त जब खरगोश को इतना विकृत कर सकता है, तो स्वयं को कितना विकृत करता होगा। यदि एक बार क्रोधी व्यक्ति की वीडियो कैसेट बना ली जाये और कुछ घण्टों के उपरांत उसी को दिखा दी जाये तो देख लेना पुरुषों का रूप तो साक्षात् भस्मासुर, बकासुर का होगा और स्त्रियों का रूप रणचण्डी, ताड़का का होगा । एक क्षण में विकराल 'भूतनी' का रूप धारण कर लेगी। उसी वक्त उसका विवेक, धैर्य, सौन्दर्य, समता, मुस्कान कपूर की भांति उड़ जाती है। क्रोध से बचने के लिये हमेशा प्रसन्न रहिय, मुस्कराते रहिये क्योंकि क्रोध और मुस्कराहट एक साथ नहीं रह सकते। क्रोध का जब जोर आता है तो आदमी कमजोर हो जाता है | जब आदमी का (34)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy