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________________ एक रुई धुनने वाला था | वह कमाई के लिय परदश गया था। वह समुद्री जहाज से वापिस आ रहा था। जिस जहाज पर वह बैठा था, उसमें देखा कि हजारों मन रुई लदी हुई है। मुसाफिर तो एक-दो ही थे | रुई को देखकर उसका सिर दर्द करने लगा क्योंकि मन में यह बात आ गई कि हाय इतनी सारी रुई हमें धुननी पड़ेगी और भी उसका गहरा विचार बन गया, सो वह बीमार हो गया। घर आया, डाक्टर बुलाया, वैद्य बुलाया, पर किसी से ठीक न हो सका । एक चतुर पुरुष आया जो, मनोविज्ञान को समझता था, बोला-हम इसे अच्छा कर देंगे। तो सबने बड़ा अहसान माना, कर दो अच्छा । अच्छा तुम सब लोग जाआ, हम अकेले में दवाई करेंगे | पूछा-भैया! कितने दिन हो गये तुम्हें बीमार हुये? तीन दिन हो गये | कहाँ से बीमार हुए? 'अमुक नगर से चला, तो रास्ते में बीमार हो गया | जहाज पर आ रहा था। जहाज पर कितने लोग बैठे थ? बाला-'लोग तो दो-तीन ही थे, पर, हाय! उसमें हजारों मन रुई लदी हुई थी। जब 'हाय' के साथ बोला, ता वह समझ गया | चिकित्सक बोला-अरे! जिस जहाज से तुम आये थे, उस जहाज में पता नहीं कैसे क्या हो गया कि जहाज में आग लग गई और सारी रुई जल गयी। ‘क्या सारी रुई जल गई?' हाँ, जल गयी | यह सुनते ही वह चंगा हो गया। बीमारी तो इसलिये हुई थी कि हाय इतनी रुई हमें धुननी पड़ेगी | जब यह बोध हा गया कि मेरे धुनने को रुई अब नहीं रही, तो ठीक हो गया | रात दिन देख लो, सभी इसीलिये परेशान हैं कि अभी हमें इतना काम करना है। ता जैस उस धुनिया को यह बात आ गई कि मेरे धुनने को कोई रुई नहीं रही, तो अच्छा हो गया, इसी तरह सम्यग्दृष्टि पुरुष के और विशेषता ही क्या है? यही विशेषता है कि ज्ञानी पुरुष का यह दृढ़ विश्वास है कि मेरे को 474)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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