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________________ उत्तम त्याग धर्म का आठवाँ लक्षण हैं उत्तम त्याग । त्याग का अर्थ है मूर्च्छा का विसर्जन । परपदार्थों से ममत्व-भाव का छोड़ना । पर वस्तुओं के रहते ममत्व-भाव छूटता नहीं, अतः उन बाह्य वस्तुओं का त्याग किया जाता है। सभी वस्तुयं पहले से ही अपने आप छूटी हैं, केवल पदार्थों के संबंध में 'यह मेरा है' इस तरह का भाव कर लेने का नाम है ग्रहण, और मेरा नहीं है, इस प्रकार का भाव कर लेने का नाम है त्याग। मोक्षमार्ग में त्याग का बहुत महत्त्व है । इससे सर्व संकट दूर हो जाते हैं । यह मेरा है, इस प्रकार का विकल्प जो है, उसको छोड़ना है। त्याग और दान के बिना न व्यक्ति का जीवन चलता है। और न समाज का । जो बुरा है, उसे त्यागो | राग-द्वेष का त्याग और औषधि, शास्त्र, अभय और आहार का दान करना, यही धर्म है । इसके बिना न जीवन चल सकता है, न धर्म पल सकता है, न साधना हो सकती है और न साध्य की प्राप्ति हो सकती है । जिन - जिन बाह्य कारणों से आत्मा में विकार उत्पन्न हो रहे हैं, उन्हें छोड़ने का नाम त्याग है । जो आत्म कल्याण में बाधक तत्त्व हैं, उनका विसर्जन ही त्याग है । मोह-माया से मुक्त होने के प्रयास का नाम त्याग है। त्याग ही जीव को ऊपर उठाता है, त्याग ही मुक्ति का मार्ग है। 471
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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