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________________ देखो थोड़े से संयम से उस खदीरसार भील ने अपना मोक्ष मार्ग शुरू किया और अगले भव में राजा श्रेणिक बना और कालान्तर में वही तीर्थंकर भगवान बनेगा । हम लोगों का भी संयम की ओर अपने कदम अवश्य बढ़ाना चाहिये । जिस प्रकार मूर्ति से रहित मन्दिर, सिर से रहित धड़, नाक से रहित चेहरे का काई महत्त्व नहीं है, उसी प्रकार संयम से रहित जीवन का भी कोई महत्त्व नहीं है । पापों से मुक्ति का उपाय मात्र संयम ही है । यह संयम गृहस्थों के लिये वस्तु का पूर्ण निषेध तो नहीं करता पर भोग सामग्री पर कंट्रोल अवश्य करता है । यह बैलेन्स ( संतुलन ) बनाना सिखाता है । जैसे सर्कस में रस्सी पर चलता हुआ व्यक्ति दोनों तरफ बराबर भार बनाये रखता है और चलता है । इसी प्रकार संयमी भी चलता है और आगे बढ़ जाता है । हम सभी को चाहिये यदि हम मुनिव्रत न ले सकें तो कम-से-कम पापों का एकदेश त्याग कर देश संयम को तो अवश्य धारण करें । राजा श्रेणिक भगवान महावीर स्वामी के समवशरण में पहुँचे, वहाँ उन्होंने दिव्य ध्वनि में सुना कि संसार में सभी जगह ठसाठस जीव विद्यमान हैं । जल, थल, नभ में जीव जन्तु भरे पड़े हैं । अतः जीव अपने कृत्यों से जीवों का घात कर पापोपार्जन करता है । जैसे ही राजा श्रेणिक ने सुना - चिन्तन मग्न हो गये कि सभी जगह जीव हैं, हमारे कृत्यों से पापोपार्जन नियम से होता है तो किस प्रकार पापों से मुक्त हुआ जाये । यह उपाय प्रभु से पूछना चाहिए । तब उन्होंने महावीर भगवान से प्रश्न पूछा कि हे भगवन् ― कथं चरें कथं चिटठे कथमासे कथम् सये । कथं भासेज्ज भुंजेज्ज एवं पावं ण वज्झइ । । 368
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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