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________________ युवक बड़ा प्रसन्न हुआ और एक-एक कदम चलकर पहाड़ी पर मंदिर में पहुँच गया। इसी प्रकार हम भी यदि धीमे-धीमे पाँचों इन्द्रियों के विषयों को छोड़ना प्रारम्भ कर दें, तो साहस बढ़ेगा और एक दिन हम पूर्ण संयमी बन जायेंगे । जिनवाणी में हर जगह संयम व संयमी की महिमा का वर्णण किया गया है। खदीरसार भील ने कौवे के मांस को खाने का त्याग कर दिया था। एक बार वह बीमार हा गया तो डाक्टरों ने कहा यदि यह कौवे का मांस खायेगा, तो ही बच सकगा, अन्यथा बचना सम्भव नहीं है। जब वह एसा करने को तैयार नहीं हुआ तो उसके साले को बुलाया गया। सबको लगा वह साले की बात अवश्य मान लेगा। उसका साला उस समझान के लिये आ रहा था, तो रास्ते में उसे एक व्यंतरणी मिली | वह रो रही थी। उसने पूंछा तुम्हें क्या हा गया है, तुम रो क्यों रही हो? वह बोली-लाग खदीरसार भील को कौवे का मांस खान क लिये कह रहे हैं और यदि वह कौवे का मांस नहीं खायेगा तो मरकर मेरा पति व्यन्तर देव होगा। साले ने भी खदीरसार भील को बहुत समझाया पर जब वह किसी भी प्रकार तैयार नहीं हुआ तो उसने उसे रास्ते की घटना सुना दी। खदीरसार भील ने कहा जब मात्र कौवे के माँस को खान का त्याग करने से मैं व्यन्तर देव बन सकता हूँ तो मैं आज से सभी प्रकार के माँस को खाने का त्याग करता हूँ | जब वह साला लौटकर जा रहा था ता रास्ते में वह व्यंतरणी फिर रोती हुई मिली, तो उसने पूँछा आप अब क्यों रो रहीं हैं? तब वह बोली-यदि वह कौवे के माँस का त्याग करता, तो मरा पति व्यन्तर देव होता पर उसने ता सभी प्रकार के माँस का त्याग कर दिया और सौधर्म दव बन गया । (367)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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