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________________ जब शिवाजी के पास ही गुरु रामदास को बैठे देखा तो पहचान गया और भयभीत होकर काँपन लगा। शिवाजी ने गुरु रामदास की पिटाई करने बाबत पूछा, तो किसान ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया। शिवाजी ने जैसे-ही उसे दंड देना चाहा, गुरु रामदास ने कहा- दंड उसे मैं दूंगा, इसने मुझे मारा है। शिवाजी ने हाथ जोड़ कर कहा ठीक है | गुरु रामदास बोले-शिवा! इसे दण्ड स्वरूप पाँच गाँव दे दो। दरबार के सभी लोग चकित हो गये | वह किसान भी आश्चर्य से गुरु रामदास की ओर देखने लगा। गुरु रामदास ने हँसकर कहा-शिवा । मैंने इसका नुकसान किया इसलिये इसने मुझे मारा, बात इतनी-सी नहीं है। असल में इसके पास खुद के खाने लायक भी व्यवस्था नहीं है। यह बहुत गरीब है | मैं इसे पाँच गाँव इसलिये दिलवा रहा हूँ कि इसकी गरीबी दूर हो जाये और यह राहगीर को प्यास बुझाने क लिये सहर्ष गन्ना खाने का दे सके | इसे कहत हैं मन की पवित्रता, जा संयम की साधना करने से जीवन में आती है। संयम के बिना नर-जन्म की सार्थकता नहीं है | संयम के बिना न तो किसी का कल्याण हुआ है, और न भविष्य में कभी हागा। ___ संयम से हमारे पुराने संस्कारों का परिमार्जन होता है। हमारे भीतर असावधानी के, लापरवाही के, अव्यवस्थित जीवन जीने के जो संस्कार पड़े हुये हैं, वे सब व्यवस्थित और परिमार्जित हो जायें- ये संयम का काम है। संस्कारों को परिमार्जित करने का काम संयम का है। भर्तृहरि राजा थे। वे विरक्त हो गये और दीक्षा ले कर जंगल में साधना करने लगे। एक दिन वे ध्यान में लीन बैठ थ । अचानक (352)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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