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________________ दिया । अतः कभी भी अपनी वाणी में कटु वचनों का प्रयोग नहीं करना चाहिये । कहा गया है मधुर वचन हैं औषधि, कटुक वचन हैं तीर । कर्णद्वार संचरै, साले सकल शरीर ।। वाणी का घाव बाण के घाव से भी गहरा होता है । बाण का घाव भर सकता है, लेकिन वाणी का घाव कभी नहीं भर सकता। किसी को किसी अस्त्र से चोट पहुँचा दी जाये, तो वह भर सकती है । पर कटुवाणी द्वारा किसी के मन पर यदि चोट पहुँच जाती है, तो फिर वह कभी नहीं भरती । जीवन भर क्या, जन्म जन्मांतरों तक के लिये बैर बँध जाता है । जिव्हा बड़ी खतरनाक है । है छोटी-सी जुबान, लेकिन क्या - क्या कर दे, कुछ कहा नहीं जा सकता। एक कहावत है कि दो इंच की जिव्हा आदमी के पूरे जीवन को समाप्त कर देती है । एक बार ऐसा हुआ। जिव्हा और दाँत में कुछ बहस छिड़ गई। जीभ से दाँत ने कहा - "तू कैसी बेशर्म है । मैं सारा परिश्रम करता हूँ और रस तू चूसती है ।" "क्या मतलब।" जीभ ने अपने पैने पन को और पैना करते हुये कहा- ' - "सुनो तुम मेरे सामने ज्यादा मुँह मत चलाओ, नहीं तो थोड़ी देर में सब समझ में आ जायेगा कि तुम्हारा क्या होगा ।" दाँत को गुस्सा आ गया। उसने जीभ को अपने दोनों जबड़ों के बीच दबा दिया । जीभ तिल - मिला गई । बोली "ठीक है, तूने मेरा अपमान किया है, देख मैं अभी तुझे मजा चखाती हूँ ।" दाँत बोला - " तू मेरा क्या कर लेगी?" जीभ ने कहा- "मैं तुझे अभी मजा चखाती हूँ ।" वह सीधे एक पहलवान के पास गई और चार छह गालियाँ दे दीं। पहलवान को गुस्सा आ गया, उसने एक घूंसा मुँह पर दे मारा तो 329
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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