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________________ से चला जाऊँगा । कल आपको विदा करना है ।" इस अप्रत्याशित बात को सुनते ही लड़की की माँ सिहर उठी, बोली- 'अभी-अभी आये हो, चार दिन हुये नहीं और बेटी को ले जाओगे? फिर अभी तो तुम्हारे ससुर भी यहाँ नहीं हैं, मैं कैसे विदा करूँगी। कोई है ही नहीं । दामाद अशिष्टता से बोला - " मैं तुम्हारे इन दकियानूसी विचारों से बिलकुल सहमत नहीं हूँ। मैं आज आया हूँ और कल जाऊँगा । कल अपनी बेटी की विदा करनी पड़ेगी ।" दामाद के इस जवाब से सास को भी थोड़ा गुस्सा आ गया | यद्यपि सास को थोड़ा संयम रखना चाहिये था, पर वह अपने आपको संभल नहीं सकी और उसने आवेश में कहा 'देखो! ज्यादा बातें मत बनाओ। अब कोई क्या कहेगा ? विदाई के लिये सामान तक नहीं है । इसके पिताजी को आ जाने दो, सामग्री आ जायेगी, फिर मैं दो दिन बाद विदा कर दूँगी। आप भी रुको, दो दिन में क्या बिगड़ जाता है ? दामाद का क्रोध और बड़ गया । उसने बेरुखी से कहा - 'कल विदा करना है तो करो, नहीं तो मैं तुम्हारी बेटी को यहीं छोड़कर चला जाऊँगा ।" जवाब सुनकर सास ने भी अपना आपा खो दिया और उसने कहा- "तुझे जाना है तो चला जा, मैं समझ लूँगी कि मेरी बेटी विधवा हो गई । " इतना सुनना था कि दामाद आग बबूला हो गया और उसने कहा - "ठीक है, अगर तू समझती है कि तेरी बेटी विधवा हो गई तो अब मैं तेरी बेटी को विधवा करके ही छोडूंगा ।" वह कमरे से तीर की तरह भागा और आँगन के कुँए में कँदकर अपनी जान दे दी । ये है वाणी का असंयम । उसने अपनी बेटी को ही विधवा बना 328
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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