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________________ रही थी। स्त्री से कोई व्यक्ति पूछता है "तू क्या कर रही है" स्त्री ने कहा तुष और माष को भिन्न-भिन्न कर रही हूँ, यह वार्ता सुनकर उन मुनिराज ने जाना कि यह शरीर ही तुष है और यह आत्मा माष है। दानों भिन्न-भिन्न हैं। इस प्रकार तुष मास भिन्नं रटते हुये आत्मानुभव करने लगे | आत्मानुभव क फलस्वरूप कुछ समय बाद घातिया कर्मों को नाश कर उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हो गई | उन्हें एक समय में तीनों लोकों का ज्ञान हो गया। आत्मा और शरीर का संबंध अनादि काल से एक होकर भी किस प्रकार अलग है, यह ‘परमानन्द स्त्रोत' में आचार्य महाराज ने स्पष्ट किया है। पाषाणेषु यथा हेम, दुग्धमध्ये यथा घृतम | तिलमध्ये यथा तैलं, देहमध्ये यथा शिवः ।। जैसे पत्थर में साना रहता है, दूध में घी रहता है, तिल में तेल रहता है, उसी प्रकार शरीर में यह आत्मा रहती है | काष्ठमध्य यथा बाहि शक्तिरूपेण तिष्ठति । अयमात्मा शरीरेषु यो जानाति स पण्डितः ।। जिस प्रकार लकड़ी में शक्ति रूप में अग्नि रहती है, उसी प्रकार इस शरीर में आत्मा रहती है, जो ऐसा जानता है, वह पण्डित है | नलिन्यां च यथा नीरं, भिन्नं तिष्ठति सर्वदा । अयमात्मा स्वभावेन, देह तिष्ठति निर्मलः || जिस प्रकार जल में कमल जल से सर्वदा भिन्न रहता है, उसी प्रकार आत्मा भी स्वभावतः शरीर से भिन्न रहती हुई, शरीर में रहती (301
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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