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________________ अपने भगवान को याद करो । तब पहली बार उनको लगा कि जीवन में भगवान की कितनी जरूरत है। उन्होंने णमोकार मन्त्र पढ़ा | अपने जीवन के अन्तिम संस्मरण मे लिखा उन्होंने कि "मैं णमोकार मन्त्र पढ़ता जाता था और रोता जाता था | आधे घण्टे तक णमोकार मन्त्र पढ़ते-पढ़ते खूब जी भर के रो लिया ।" जब डाक्टर दूसरी बार उनका चैक-अप (जाँच) करने आया तो उन्होंने पूछा - मिस्टर जैन ! आपने अभी थोड़ी देर पहले कौन-सी मेडिसिन ( दवाई ) खाई है ? नर्स से पूछा कि इनका कौन-सी मेडिसीन ( दवाई) दी गई है ? नर्स कहा कि अभी कोई दवा नहीं दी गई । हाँ आपने कहा था- अपने ईश्वर को याद करो, इन्होंने वही किया है अभी । उन्होंने अपने संस्मरण में लिखा कि, मुझे बार-बार यही लगता था कि मैंने जीवन भर ऐसे निर्मल परिणाम के साथ भगवान को याद क्यों नहीं किया? अब मृत्यु के निकट समय में अपने भगवान को याद कर रहा हूँ तो मुझे अपने पूरे जीवन पर रोना आया और मन भीग गया। ये है मन का भीगना, ये भी निर्मलता लाता है । एक और घटना है जिससे मालूम पड़ेगा कि हमारा मन कैसे भीगता है? जितना भीगता है उतना निर्मल होता जाता है, जितना निर्मल होता है उतना भीगता जाता है । एक आदमी रोज एक निश्चित रास्ते से निकलता, उस पर एक दूसरा आदमी रोज ऊपर से कचरा डाल देता। बड़ी मुश्किल, रोज का काम हो गया यह । फिर भी वह आदमी कचरा डालने वाले को कुछ नहीं कहता, सोचता कि कचरा शरीर पर गिरा है, मन को क्यों गन्दा करें? शरीर ही तो गन्दा हुआ है, इससे क्या फर्क पड़ता है। ऐसा सोचकर वह आगे बढ़ जाता है। एक दिन वह उसी रास्ते से होकर 272
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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