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________________ खिलौने हों, कि किसी ने जैसी जितनी चाबी भरी, उतना ही चलने लगे, जैसे ही किसी ने कोई खराब बात कह दी, मन गन्दा हो गया, किसी ने जरा-सी अपने मन की बात कह दी मन प्रसन्न हो गया । मानों हम दूसरों की भरी हुई चाबी के अनुसार अपना जीवन जीते हैं । एकनाथ फिर भी बिल्कुल शान्त रह सौ दफे स्नान किया उन्होंने | जिसने थूका था, अब उसे तकलीफ होने लगी । वह एकनाथ से क्षमा माँगने लगा- बहुत गलती हो गई, मुझे क्षमा करें । एकनाथ बोले नहीं मैं तो तुम्हें धन्यवाद देने वाला था, मैं तो एक ही बार नहाता, फिर इतनी निर्मलता नहीं आती । तुम्हारी वजह से मुझे सौ बार नहाने को मिला। और इतना ही नहीं, मैंने आज समझ लिया कि कोई कितना भी करे, मेरा मन कलुषित नहीं होगा, मलिन नहीं होगा, ऐसा चमकीला / निर्मल बना रहेगा । - क्या हम अपने मन को इस तरह मलिनता से बचाकर चमकीला बनाये रख सकते हैं? निर्मलता का एक अर्थ होता है मन का भीग जाना । मन का भीग जाना क्या है ? इससे भी हमारा मन निर्मल होता है । जैनेन्द्र कुमार के जीवन का एक उदाहरण है। जैनेन्द्र कुमार बड़े साहित्यकार थे । वे अपने नाम साथ जैन नहीं लगाते थे, बंद कर दिया था उन्होंने जैन लिखना । जीवन के आखिरी समय जब वे पैरालाइज ( लकवे से ग्रस्त हो गये, बोलना भी उनका मुश्किल हो गया तब जो भी उनके पास आता उसे देखकर उनकी आँखों से आँसू गिर जाते, इससे मालूम हो जाता था कि पहचान लिया, इतना ही नहीं, अपनी भावनाएँ भी व्यक्त कर दी हैं । उनको बोलने में बहुत तकलीफ होती थी । डाक्टर ने कहा कि अब ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं है, बस अब 271
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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