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________________ भाई ! मुझे हँसी आ रही है तुम पर, जो अपना मकान बिना नींव के खड़ा करने जा रहे हो । सन्तों को उससे भी ज्यादा हँसी ता उन पर आती है, जो अपने जीवन के महल को बिना नींव के खड़ा करना चाहते हैं | जीवन के महल को खड़ा करने के लिए आधार जरूरी है | धर्म हमारे जीवन का आधार है। इसीलिए धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों में सबसे पहले धर्म पुरुषार्थ का रखा गया है। आचार्य गुणभद्र महाराज ने आत्मानुशासन ग्रंथ में लिखा है - भैया! यदि विषयभोग ही भोगना है तो धर्म करते हुये भोगो; अधर्म के साथ नहीं। जैसे किसी वृक्ष पर 100 फल लगे हैं। कोई व्यक्ति वृक्ष को जड़ से काटकर फल प्राप्त करता है और कोई उस वृक्ष पर चढ़कर सिर्फ फलों को प्राप्त करता है। फल तो दोनों को उतने ही प्राप्त होंगे जितने वृक्ष में लगे हैं; पर जो वृक्ष को जड़ से काट डालता है, उसे आग के लिये फल प्राप्त होना बन्द हो जाते हैं | इसी प्रकार जो धन-सम्पत्ति आदि प्राप्त हुई है, वह तो उतनी ही प्राप्त होगी जितना पुण्य का उदय है। पर जो उसे अधर्म के साथ भोगता है, उसे आग के भवों में कुछ भी प्राप्त नहीं होता और जो धर्म करते हुये भोगता है, वह आगे भी स्वर्गादिक प्राप्त कर परम्परा से मोक्षसुख को प्राप्त करता है । अतः जब तक हमसे विषय-भोग ये आरम्भ-परिग्रह नहीं छूटते, तब तक हमें धर्म करत हुये इन्हें अनासक्त भाव से भोगना चाहिये। धर्म मानव हृदय की एक उच्च और उदात्त, पुनीत ओर पवित्र भावना है। धार्मिक भावना से मनुष्य में सात्विक प्रवृत्तियों को उदय होता है | यथार्थ में जीव का आत्मीय स्वजन तो उत्तम क्षमा आदिक रूप दशलक्षण धर्म ही है। बताआ, वास्तविक स्वजन कौन है? जो अपनी रक्षा करे, अपन हित की बात करे, ऐसा स्वजन कवल क्षमा, (12)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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