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________________ धर्म के दशलक्षण उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य ये धर्म के दशलक्षण हैं । यहाँ पर पूज्य मुनिराजों श्री सुधासागर जी महाराज, श्री क्षमा सागर जी महाराज, श्री समतासागर जी महाराज एवं श्री प्रमाणसागर जी महाराज के प्रवचनों के आधार पर इनका वर्णन किया जायेगा। यदि हम धर्म के रास्ते पर चलेंगे तो धर्म मिलेगा और पाप के रास्ते पर ही बढ़ते रहे तो पाप ही मिलगा । धर्म तिराता है और पाप डुबाता है। धर्म पापमलपुंज को धोकर हमें पवित्र बना देता है । धर्म हमारे जीवन का आधार है । एक व्यक्ति अपना मकान बनवा रहा था। मकान बनाने के लिये वह बार-बार दीवाल उठाता कि दीवाल गिर पड़ती। वह दो-चार फुट भी नहीं उठ पाई । वह काफी परेशान था । मकान बन नहीं पा रहा था। उसने उधर से गुजरते हुये एक सन्त को अपनी पीड़ा सुनाई । सन्त ने उसकी बात सुनी और बोल - भाई ! दीवार उठाना है तो पहले नींव खोदो। उसने कहा- "मैं नींव नहीं खोदता, मकान बनाने के लिए नींव की आवश्यकता ही नहीं। लोग बेवकूफ हैं, जो अपना बहुत सारा धन उस नींव में लगा देते हैं, जो दिखाई तक नहीं देती ।" सन्त उसकी अज्ञानता भरी बात सुनकर हँसते हुये बोले - अरे ! 11
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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