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________________ आप मुझे थोड़ी देर के लिये अपना कोट दे दीजिये तो मुझे उनसे सुखी होने का मंत्र मिल जायेगा। सेठ ने कहा- कोट की क्या बात है । एक क्या, चार कोट ले जाओ। पर मैं सुखी नहीं हूँ, मैं तो बहुत दुःखी हूँ | उस जिज्ञासु ने कहा- आप मुझे भ्रमित कर रहे हैं। आपके पास इतनी धन-संपत्ति है, इतना विशाल महल है, इतना बड़ा परिवार है, पूरे - के - पूरे एथेंस शहर के शहंशाह माने जाते हो, आपसे बड़ा सुखी और कौन होगा? आपको आखिर कमी किस चीज की है? सेठ ने कहा- यदि तुम देखना चाहते हो तो कुछ दिन मेरे घर ठहरो । जिज्ञासु का सारा इंतजाम कर दिया गया । जिज्ञासु मेहमान की तरह रुका, तो देखता क्या है कि रात में सेठानी सेठ पर आग की तरह अंगारे बरसा रही है। सेठ चुपचाप सुन रहा है। उससे कह रहा है कि देखो अपने घर में मेहमान आया है, कम-से-कम मेहमान का तो ध्यान रखा । थोड़ी देर बाद सेठानी और जोर से उबल पड़ी । थोड़ी देर बार सेठ के रोने की आवाज आई तो उस जिज्ञासु को एक दिशा मिली । उसने कहा कि इस सेठ के पास धन-दौलत की कोई कमी नहीं है, लेकिन इसकी पत्नी तो साक्षात राक्षसी है । इससे अच्छा मैं हूँ । मुझे इस प्रकार का दुःख नहीं है । यह आदमी तो बहुत दुःखी है। इस आदमी के कोट से अपना काम नहीं बनेगा । वह आगे चलकर एक बड़े जमींदार के दरवाजे पहुँचा और उससे भी कोट के लिये प्रार्थना की। जमींदार ने कहा- भाई! कोट ले जाना हो तो ले जाओ, लेकिन मैं क्या बताऊँ, मेरे पास भले ही सब कुछ है फिर भी मैं बहुत दुःखी हूँ। मेरा बेटा जो है, वह एकदम आवारा और लफंगा बन गया है । उसे नशे की आदत हो गई है । 253
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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