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________________ हो भी कैसे? क्या आग में घी डालने से आग कभी बुझ सकती है? कभी नहीं | हमारे मन की तृष्णा हमें सदैव दौड़ाती रहती है। सभी लोग धन संग्रह से ही धन्य हो रहे हैं । 'बाप बड़ा न भैया, सबस बड़ा रुपैया' और बस उसी की कमाई में दिन-रात लग हैं और धर्म को भूले हुये हैं। हम लोभ के कारण अपने स्वर्णिम मानव जीवन को गँवा रहे हैं। जिस आत्मा में परमात्मा बनने की शक्ति है, पतित से पावन बनने की क्षमता है, वही आत्मा लोभ-लिप्सा के कारण संसार में रुल रहा है। पर ध्यान रखना, धन कितना ही बढ़ जाये, उतना ही कम मालूम पड़ता है। श्मशान में कितने ही मुर्दे ले जाओ, उसका पेट नहीं भरता, अग्नि में कितना ही ईंधन डाला, वह तृप्त नहीं होती, सागर में कितनी ही नदियाँ मिल जावें, वह तृप्त नहीं होता। इसी प्रकार तीन लोक की सम्पत्ति मिलने पर भी व्यक्ति की कामनाएं (इच्छायें) पूरी नहीं हो सकतीं। कामनाओं का कलश बड़ा विचित्र है | यह देखने में बड़ा सुन्दर और आकर्षक है, लेकिन यह कभी भर नहीं सकता, क्योंकि नीचे से इसकी पेंदी फूटी हुई है । जिस कलश की पेंदी न हो, उस कलश को भरने का कोई कितना ही प्रयास करे, वह आज तक भरा ही नहीं, तो भरेगा कैसे? आचार्य कहते हैं तुम यदि सुखी रहना चाहत हो, तो अपनी इच्छाओं को कम करो और हर हाल में संतुष्ट रहने का प्रयास करो। संसार में सभी व्यक्ति दु:खी हैं, वे सदा सुख की तलाश करते हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक व्यक्ति सुख की तलाश करता है। एक छोटा-सा बच्चा है, यदि वो रा रहा है, तो सुख क लिये रा रहा है। जवान व्यक्ति सपने देख रहा है, सुख के सपने देख रहा है | बूढ़ा भी (251
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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