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________________ हैं किन्तु इसके तीन गुण मुझ बड़े प्यारे लगते हैं - पहला गुण तो इस वंशी का यह है कि कभी भी यह बिना बुलाय नहीं बोलती । इसका दूसरा गुण यह है कि जब भी यह बोलती है तो मीठा, मधुर ही बोलती है | मधुर भाषी होना इसका दूसरा श्रेष्ठ गुण है। और तीसरा सबसे अच्छा गुण यह है कि वंशी के अन्दर कोई भी ग्रंथि, कोई भी गाँठ नहीं हैं, आर-पार पोली है। जैसा बाहर साफ-सुथरा सरल जीवन है, अन्दर का भी एसा ही साफ-सुथरा सरल जीवन है, अंदर कोई ग्रंथि/ गाँठ नहीं है। जिसका जीवन ग्रंथि / गाँठ से रहित एकदम सरल होता है, उसके जीवन में आर्जव धर्म आता है, और वह सभी के स्नेह और प्रेम का पात्र बनता है। यह आर्जव धर्म वंशी के तीन गुणों को लेकर हमारे जीवन में आना चाहिये । हमारे जीवन में बिना बुलाये बोलने की प्रवृत्ति नहीं होना चाहिय | हम जब भी बोलें, अत्यन्त मीठा बालं और हमारा जीवन बिना गाँठ के निश्छल व्यवहारी हो, भीतर-बाहर से एक-जैसा साफ-सुथरा हा तो ही जीवन में आर्जव धर्म उपलब्ध हो सकता है | मायाचारी व्यक्ति दूसरों को ठगने का प्रयत्न करता है, पर अन्त में वह स्वयं ही ठगा जाता है | दूसरों को ठगकर, धोखा दकर हम भले थोड़ी देर के लिये आनन्दित हो जायें और अपने को चतुर मानने लगें, पर यह ध्यान रखना भले ही हम दूसरों को छलें, पर छाले तो अपनी ही आत्मा पर पड़ेंगे | जो दूसरों का ठगने के लिये मायाजाल रचता है, वह अन्त में स्वयं ही उस जाल में फँस जाता है। एक किसान ने अपना कुआँ वाला खेत बेचा, सौदा तय हुआ | हिसाब किताब चुक गया । खरीददार किसान जब कुँए पर पानी भरने (217)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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