SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दे। ये वह आदमी है, जो कोड़े मार-मारकर तुम्हें नाचना सिखाता है, डमरू बजा-बजाकर चौराहों पर नचाता है, फिर भी तूने उस पर विश्वास कर लिया । बंदर ने शेर से कहा- नहीं, वनराज! मैं इस आदमी को धक्का नहीं दूँगा, भले ही ये हम पर अत्याचार करे। इंसान अपनी इंसानियत भूल जाये, पर पशु अपनी पशुता नहीं भूलेगा । इस आदमी ने अपना धर्म छोड़ दिया है, पर मैं जानवर हूँ, मैं अपना धर्म नहीं छोडूंगा और मैं इसे धक्का नहीं दूंगा । इतना अधम व निकृष्ट कार्य मनुष्य ही कर सकता है, पशु नहीं । इससे क्या मालूम पड़ता है? हमारे भीतर आज दूसरे के प्रति धोखा देने का, छल करने का भाव कितना अधिक बन गया है । कहानी लिखने वाले को पशु में मनुष्य से अधिक विश्वास दिखाना पड़ा, मनुष्य को धोखा देने वाला बताना पड़ा। जबकि मनुष्य को विश्वासी होना चाहिये था, ईमानदार होना चाहिये था। जिसका जीवन सरल होता है, वह सभी का स्नेहपात्र होता है । एक बार यमुना के किनारे श्रीकृष्णजी बंशी की तान छड़ रहे थे । जिसको सुनकर मृग आदि मग्न हो रहे थे। उसी समय गोपियाँ पानी भरने के लिये यमुना नदी पर गई । गोपियों ने जैसे ही कृष्ण के अधरों में लगी वंशी को देखा, तो ईर्ष्या से जल गईं कि, अरे! हम लोग इतने सजे-धजे, फिर भी कृष्ण से इतने दूर और यह बंशी काली-कलूटी, छेद-पर- छेद फिर भी कृष्ण - कन्हैया का इतना प्यार पा रही है । श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि बात ज्यादा कुछ नहीं है । ये जो बांसुरी है, भले ही रंग में काली-कलूटी, दुबली-पतली-सी, छेद - पर- छेद 216
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy