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________________ सरलता नहीं सीखी, आर्जव गुण को नहीं समझा, तो बच्चों में भी आने वाला नहीं है। आचार्य श्री न लिखा है "A good mother is better then hundred teachers" एक अच्छी माँ उन सौ अध्यापकों स श्रेष्ठ है, जो शिक्षा देते हैं। अगर आप पर घर के कुसंस्कार पड़े हैं, फिर आप कितने ही उपदेश सुनो कोई असर होने वाला नहीं। मिट्टी जब तक कच्ची रहती है, गीली रहती है, तब तक उससे चाहे घड़ा बनो लो, चाहे कोई दूसरा बर्तन बना लो | पर बन जाने के बाद और अवा में पक जाने के बाद फिर परिवर्तन नहीं हा सकता, भले ही उसके टुकड़े हो सकते हैं। मायाचारी व्यक्ति दूसरों का नहीं स्वयं का ही ठगता है। उसे दुर्गतियों में जाकर कष्ट भोगना पड़ते हैं। उसका काई नाम तक नहीं लेना चाहता। रावण ने छल करके सीता का हरण किया था। वह साधु-वेष बनाकर आया था। यदि वह साधु-वेष में नहीं आता तो क्या सीता उस रेखा को पार करतीं? नहीं। अगर कोई सबसे अधिक विश्वासपात्र है, तो वह है साधु और उसमें आकर कोई ठग बन जाय, तो वह ठग नहीं रहा, उल्टा ठगाया जा रहा है। रावण ने सीता को नहीं ढगा, बल्कि वह स्वयं ठगाया गया । आज भी कोई अपने पुत्र का नाम रावण नहीं रखता, सूर्पनखा नहीं रखता। दोनों भाई बहिन थे। रावण की बहिन सूर्पनखा ने लक्ष्मण के साथ छल किया था, मायाजाल रचा था। वे दोनों नरक के घोर दुःख सहन कर रहे हैं। आजतक कोई भी रावण के नाम का व्यक्ति न हुआ है और न होगा। (204
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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